खरीफ की फसलों को रोग व कीटों से बचाएं
जौनपुर : खरीफ की फसलों में कीट व रोग लगने की संभावना बढ़ गई है। ऐसे में बचाव के लिए हमेशा निगरानी आव
जौनपुर : खरीफ की फसलों में कीट व रोग लगने की संभावना बढ़ गई है। ऐसे में बचाव के लिए हमेशा निगरानी आवश्यक है। लक्षण दिखने पर तुरंत दवाओं का छिड़काव करें।
उप कृषि निदेशक अशोक कुमार उपाध्याय ने कहा कि अरहर, धान की फसल में पत्ती लपेटक कीट लगने की संभावना है। पीले रंग की सूड़ियां पौधे की चोटी की पत्तियों को लपेटकर सफेद जाला बना लेती हैं और उसी में छिपी पत्तियों को खाती हैं और बाद में फूलों, फलों को नुकसान पहुंचाती हैं। इनसे बचाव हेतु मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत ईसी एक लीटर या क्यूनालफास 25 फीसद ईसी 1.25लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
अरहर का उकठा रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधा सूखने लगता है। जड़े सड़कर गहरे रंग की हो जाती हैं तथा छाल हटाने पर जड़ से लेकर तने तक काले रंग की धारियां दिखाई देती हैं। इसके नियंत्रण का एकम मात्र उपाय बुवाई से पूर्व बीजोपचार है।
इसी प्रकार धान में तना छेदक कीट की पूर्ण विकसित सूड़ी हल्के पीले रंग के शरीर तथा नारंगी पीले रंग की सिर वाली होती हैं जो फसल के लिए हानिकारक हैं। इनके आक्रामण के फलस्वरूप फसल के वानस्पतिक अवस्था में मृतगोभ तथा बाद में प्रकोप होने पर सफेद बाली बनती है। इनके नियंत्रण हेतु कार्बोफ्यूरान तीन जी 20 किलोग्राम या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड चार फीसद दानेदार चूर्ण 17-18 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। धान की पत्तियों में भूरा धब्बा रोग लगने पर पत्तियां गहरे कत्थई रंग के गोल अंडाकार धब्बे दिखाई देते हैं तथा इन धब्बों के चारों तरफ हल्के पीले रंग का घेरा बना जाता है जो इस रोग का विशेष लक्षण है। इसके उपचार हेतु मैंकोजेब 75 फीसद या जिनेब 75 फीसद रसायन को दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में छिड़काव करें। धान का जीवाणु झुलसा में पत्तियों की नोक और उनके किनारे सूखने लगते हैं और किनारे अनियमित एवं टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। लक्षण दिखते ही नत्रजन की टाप ड्रे¨सग रोक देनी चाहिए। उपचार हेतु डाइथेमोएट 30 फीसद ईसी 1.500 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।