..जनता फिर हुई 'जनार्दन'
योगेश कुमार
जौनपुर : भला हो चुनावी वक्त का कि गांधी जी के 'दरिद्र नारायण', समाज के अंतिम व्यक्ति का भी महत्व फिर उजागर हो गया। पांच वर्ष तक सियासी चकाचौंध से दूर हाशिए पर रखी जाने वाली आम 'जनता' फिलवक्त 'जनार्दन' सरीखी मान ली गई है।
इन्हीं मतदाताओं को भाग्य विधाता समझ सियासी सूरमा 'माननीय' नेता व उनकी फौज देखते ही दंड-प्रणाम कर याचक की भूमिका में आने में क्षण मात्र भी देर नहीं लगा रही है। अब यह उस 'दरिद्र नारायण' की दरियादिली व सदाशयता नहीं तो और क्या है कि वह इस 'सियासी नौटंकी' को पिछले कई बार से देखने-समझने के बावजूद नेताओं को खरी-खरी सुनाने की जगह मुस्कराकर उनका स्वागत करता है।
प्रचार अभियान के दौरान अभिनेताओं की शैली को आत्मसात करते नजर आने वाले नेताओं की कार्यप्रणाली का सच जानने व पांच साल ही नहीं ताउम्र के तमाम गिले-शिकवे होने के बावजूद यह जनता भी जनार्दन की तरह उस क्षण राग-द्वेष से परे होकर 'दर' पर आने वालों को कम से कम उस पल तो निराश नहीं करता। अब भले ही शेष पांच वर्ष की अवधि तक उसके खाते में निराशा ही हाथ लगे।
लग्जरी वाहनों से लकदक धवल वस्त्रों को धारण करने वाले माननीय नेता खेत-खलिहानों में इस समय धूल से सने किसानों के पास पहुंचते ही उनके साथ गलबहियां करने का बखूबी अभिनय कर रहे हैं। एक बार फिर आम जनता को भविष्य का सब्जबाग दिखाते हुए 'हम ही आपके हैं' का एहसास कराकर वे दूसरे की 'दर' की ओर चल देते हैं। उधर एक बार फिर वादों व आश्वासनों के सहारे अपने वक्त बदलने की उम्मीद से आह्लदित चुनावी बेला में 'जनता से जनार्दन' बना मतदाता पुरानी खीझ को भूलकर देश का भाग्य विधाता चुनने का मन बनाने लगा है।