बारिश और बाढ़ का कहर, सड़ी फसल
महेबा, संवाद सूत्र : बाढ़ का पानी घटने से ग्रामीणों को राहत तो मिली पर पानी में डूबी फसलें सड़ जाने स
महेबा, संवाद सूत्र : बाढ़ का पानी घटने से ग्रामीणों को राहत तो मिली पर पानी में डूबी फसलें सड़ जाने से किसानों को भारी क्षति हुई है। खड़ी फसल देख किसान आंसू बहा रहे हैं। पैदावार तो दूर की बात सड़ी फसल पशुओं के चारे के काम भी नहीं आ रही है। क्षति के आंकलन के लिए टीम न पहुंचने से किसान बेहद दुखी हैं।
आपदाओं के संकट में फंसे किसान उबर नहीं पा रहे हैं। पहले सूखा फिर रबी में ओलावृष्टि से किसानों की फसल चौपट हो गयी। इस वर्ष खरीफ में समय से बोआई हो जाने के कारण अच्छी पैदावार की आस लगाये थे पर कुदरत ने किसानों को कहीं का न छोड़ा। लगातार बरसात से खेतों में खड़ी तिल, उड़द, मूंग की फसलें पहले बर्बाद हो गयीं। इसके बाद यमुना नदी में दो बार बाढ़ आ जाने से तटवर्ती गांवों की फसलें बाढ़ के पानी से सड़ गयीं। बाढ़ के पानी से नून नदी में उफान आने से नदी के किनारे के गांव पिपरौंधा, हथनौरा, गोरा कला, महेबा, निबहना, उरकरा कला, मंगरौल, पड़री, कुटरा, नरहान, दहेलखंड, सिमरा शेखपुर, पाल, सरैनी, खड़गुई, हीरापुर, कीरतपुर, देवकली आदि गांवों के किसानों की फसलों को भारी नुकसान हुआ है। किसानों ने बताया कि बाढ़ का पानी कम हो जाने के बाद जो फसलें खड़ी हैं उसका चारा पशु भी नहीं खा रहे हैं। किसानों की जो खरीफ में पैदावार की उम्मीद थी वह भी जाती रही। अब सड़ी फसल देख किसान बुरी तरह परेशान हैं। बाढ़ का पानी घटे दो दिन बीत गये पर राजस्व विभाग की टीम क्षति के आंकलन के लिए नहीं पहुंची जिससे किसान ज्यादा दुखी हैं। उप जिलाधिकारी जलराजन चौधरी ने बताया कि बोई हुई जो फसलें बाढ़ से डूब चुकी हैं उनका सर्वे कराया जा रहा है।
कराहते किसान
बाढ़ का पानी कम हुए दो दिन बीत गये लेकिन अभी तक उनके गांव में फसल का नुकसान देखने के लिए कोई नहीं आया है। लेखपाल अपनी समस्याओं को लेकर काम बंद हड़ताल पर हैं। प्रमोद
अगर समय से बाढ़ से हुए क्षति का सर्वे करा दिया जाता तो बर्बादी देख विचलित हो रहे। किसानों को सांत्वना मिल जाती। बाढ़ चौकियों में लगाये गये कर्मचारी भी किसानों का दुख जानने के लिए गांवों में नहीं पहुंचे हैं। रामदेव
बरसात व बाढ़ के पानी से फसलें सड़ जाने के बाद किसानों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है। अब किसानों के पास रबी की बोआई के लिए खाद, बीज खरीदने के धन नहीं है। कैसे कटेगी पूरी साल। अंगद
किसानों का सरकारी इमदाद से भला होने वाला नहीं है। चूंकि बर्बादी का 25 फीसदी भी किसानों को नहीं दिया जाता है। राहत पाने के लिए महीनों चक्कर लगा लगाकर थक जाते हैं। तब कहीं ऊंट के मुंह में जीरा के समान राहत राशि नसीब हो पाती है। बृजेश