'उसको ढूंढ़ो मगर सलीके से, वो खुदा है कहां नहीं मिलता..'
उरई, जागरण संवाददाता : हजरत गैबू शाह रहमतुल्लाह अलैह का उर्स कुल की रस्म के साथ संपन्न हो गया। इससे
उरई, जागरण संवाददाता : हजरत गैबू शाह रहमतुल्लाह अलैह का उर्स कुल की रस्म के साथ संपन्न हो गया। इससे पूर्व कव्वाली की दूसरी बज्म में फनकारों और उन्हें सुनने आए समाज के अग्रणी जनों ने सूफी-संतों के जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया।
कव्वाल आरिफ नाजा (मुंबई) ने गायकी की शुरुआत दुआईया हम्द 'अल्लाह मेरी आंख को ऐसी रसाई दे, मैं देखूं आईना तो तू दिखाई दे' सुनाकर किया। इस भवना को और पुष्ट करते हुए आरजू बानो (मुंबई) ने सुनाया 'जिंदगी का निशा नहीं मिलता, जो जहां है वहां नहीं मिलता, उसको ढूढ़ो मगर सलीके से, वो खुदा है कहां नहीं मिलता।' गजल के दौर में आरजू ने कहा 'दे रहा था वो जो अंदाजे तरन्नुम मुझको, क्यों गया छोड़के इस हाल में गुमसुम मुझको।' आरिफ नाजा ने जवाब में कहा 'तुम भी इस सूखते तालाब का चेहरा देखो और फिर ख्वाब में मेरी तरह दरिया देखो।'
इससे पहले कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र यादव ने फनकारों की भूमिका को जमकर सराहा। उन्हें मुल्क की संस्कृति की रूह बताते हुए कि दिलों को जोड़ने, संवेदनाएं जगाने का जो काम ये फनकार करते हैं वो इबादत से कम नहीं है और समाज की इस सेवा की कभी कीमत अदा नहीं कर सकता। कव्वाल आरजू बानो की मांग पर उन्होंने कहा कि प्रदेश में कव्वाली के लिए एकेडमी की स्थापना तथा अभावग्रस्त साजिंदों, कोरस सहयोगी व गायक वर्ग के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री को सुझाव पत्र सौपेंगे। जमाल मकनिया द्वारा उपस्थित लोगों को धार्मिक कंट्टरवाद, आतंकवाद व नफरत से परहेज करने और सूफिया इकराम के रास्ते चलकर टूटे दिलों को जोड़ने का संकल्प दिलाया गया। उर्स कमेटी के अध्यक्ष इरशाद ने कहा कि अगले उर्स के मौके पर गरीब, बेसहारा कन्याओं का सामूहिक विवाह कराया जाएगा। इसमें शकील अंसारी, बबलू सहयोग करेंगे। इस मौके पर जब्बार अंसारी, मुहम्मद मुजी आजम, हाफिज जब्बार, सत्तार बाबा, नौशे ठेकेदार और डा. मुबीन अंसारी समेत कई लोग मौजूद रहे।