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सपा से बगावत की राह पर चल पड़े डॉ. राना

विनय चतुर्वेदी, हाथरस : वर्ष 1992 में सपा के गठन से लेकर अब तक पार्टी में निष्ठावान रहे पूर्व एमएलस

By Edited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 11:19 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 11:19 PM (IST)
सपा से बगावत की राह पर चल पड़े डॉ. राना
सपा से बगावत की राह पर चल पड़े डॉ. राना

विनय चतुर्वेदी, हाथरस : वर्ष 1992 में सपा के गठन से लेकर अब तक पार्टी में निष्ठावान रहे पूर्व एमएलसी डा.राकेश ¨सह राना ने अपनी तपस्या भंग कर दी है। सिकंदराराऊ से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सोमवार को नामांकन कर वे सपा से बगावत की राह पर निकल पड़े हैं। नामांकन करके क्षेत्र में लौटने के बाद उन्होंने जुलूस निकालकर क्षेत्र में खुद का शक्ति प्रदर्शन भी किया।

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हाथरस के गांव बिसाना के राकेश ¨सह राना छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं। लखनऊ विश्व विद्यालय में अध्ययन के दौरान वे छात्र संघ के महामंत्री एवं अध्यक्ष रहे। छात्र जीवन से निकलकर दलीय राजनीति में प्रवेश किया तो उसकी शुरुआत भी सपा से की। वे वर्ष 1992 में उसी वक्त सपा से जुड़े जब मुलायम ¨सह यादव ने सपा का गठन किया। उनकी नेतृत्व क्षमता को देखकर मुलायम ¨सह यादव ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी और समाजवादी युवजन सभा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया। फिर उनकी निष्ठा का इनाम उन्हें एमएलसी बनाकर दिया गया। करीब एक दशक पूर्व राना यहां आकर राजनीति में सक्रिय हुए और उन्होंने अपने लिए सिकंदराराऊ को चुन लिया। उनकी इच्छा विधायक बन कर सदन में पहुंचने की थी। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने सपा सुप्रीमो के सामने चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की तो सपा ने उन्हें सिकंदराराऊ से प्रत्याशी घोषित कर दिया। वे क्षेत्र में जी-जान से जुटे, लेकिन सियासत ने बड़ी करवट ली। हाथरस क्षेत्र सुरक्षित हो जाने पर पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय ने सिकंदराराऊ का रुख कर लिया। उसी दौरान पूर्व विधायक यशपाल ¨सह चौहान ने पाला बदला और वे भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए। यहीं से डा. राना के सपा में सफर को ग्रहण लगा। सपा ने उनका टिकट काटकर यशपाल ¨सह चौहान को प्रत्याशी घोषित कर दिया। उस वक्त राना पार्टी नेतृत्व के आदेश के अनुपालन में शांत होकर बैठ गए। यशपाल ¨सह चौहान ने रामवीर उपाध्याय से कड़ा लोहा लिया, मगर वे चुनाव हार गए। ऐसे में राकेश ¨सह राना को फिर से आस बंधी और वे क्षेत्र में सक्रिय होकर अगले चुनाव की तैयारी करने लगे। उन्हें भरोसा था कि इस बार पार्टी उन्हें जरूर प्रत्याशी बना देगी, मगर सपा ने फिर से यशपाल ¨सह चौहान को ही मैदान में उतार दिया। राना अंतिम दौर तक टिकट बदलने के इंतजार में रहे, मगर जब उन्हें लगा कि अब कुछ नहीं होने वाला तो वे बगावत की राह पर निकल पड़े। सोमवार को उन्होंने बगावती तेवर दिखाते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन कर दिया।


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