हाथरस में तीन बार फहरा है केसरिया परचम
कृष्णबिहारी शर्मा, हाथरस संसदीय क्षेत्र के रूप में भले ही हाथरस भाजपा का गढ़ रहा हो, मगर विधान
कृष्णबिहारी शर्मा, हाथरस
संसदीय क्षेत्र के रूप में भले ही हाथरस भाजपा का गढ़ रहा हो, मगर विधानसभा क्षेत्र भाजपा के ज्यादा माफिक नहीं रहा। वर्ष 1980 में भाजपा नामकरण से पूर्व यह पार्टी भारतीय जनसंघ के रूप में पहचानी जाती थी और इसका खाता हाथरस में चौथे विधानसभा चुनाव में वर्ष 1967 में खुला था। इसके बाद फिर जनसंघ यहां खो गया और सातवें विधानसभा चुनाव 1977 में उसकी वापसी हुई। 1976 में लगी इमरजेंसी को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने कांग्रेस के खिलाफ लामबंद होकर जनता पार्टी बनाई और जनसंघ भी इसमें सहयोगी रहा। यह सीट जनसंघ के खाते में आई और उसके प्रत्याशी कुंवर रामशरन ¨सह ने एक बार फिर जीत दर्ज की। 1980 में भाजपा नामकरण के बाद यह पार्टी फिर यहां खो गई। भाजपा के रूप में उसका खाता बारहवें विधानसभा चुनाव 1993 में यहां खुल पाया। इस दौरान भाजपा के राजवीर ¨सह पहलवान विधायक बने और उसके बाद फिर भाजपा यहां से गायब हो गई।
आजादी के बाद पहला चुनाव वर्ष 1952 में हुआ। उस समय भाजपा का नाम भारतीय जनसंघ (बीजेएस) हुआ करता था। इस दल से पहली बार वासुदेव सहाय मैदान में उतरे और मात्र 4200 वोट पाकर पांचवें स्थान पर रहे। वर्ष 1957 में चुन्नी लाल को भारतीय जनसंघ ने चुनाव मैदान में उतारा तो वे 13,999 वोट पाकर पांचवें स्थान पर रहे। वर्ष 1962 के तीसरे चुनाव में भी जनसंघ के प्रत्याशी किशनलाल चौथे स्थान पर रहे। 1967 के चौथे विधानसभा चुनाव में जनसंघ का खाता यहां खुला और कुंवर रामशरन ¨सह विधायक चुने गए। पांचवें विधानसभा चुनाव 1969 में जनसंघ फिर पिछड़ गया और उसके प्रत्याशी कुंवर रामशरन ¨सह चौथे स्थान पर पहुंच गए। 1974 के छठे विधानसभा चुनाव में जनसंघ ने यहां प्रत्याशी बदलकर विश्वनाथ को मैदान में उतारा, मगर वे भी कोई करिश्मा नहीं दिखा सके। वे भी चौथे ही स्थान पर रहे। 1976 में इमरजेंसी के दौरान देश के ज्यादातर राजनीतिक दल लामबंद हुए और उन्होंने 1977 का सातवां विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए जनता पार्टी बनाई। जनसंघ भी इसमें साथ रहा तो हाथरस सीट उसके खाते में आई। उसने एक बार फिर कुंवर रामशरन ¨सह पर दांव खेला तो कामयाबी भी मिली। रामशरन जीतकर फिर विधानसभा पहुंचे। उसके बाद वर्ष 1980 में भारतीय जनसंघ का नाम बदलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कर दिया गया। इसके बाद भाजपा इस क्षेत्र में फिर खो गई। इसकी वापसी हुई बारहवें विधानसभा चुनाव 1993 में। यहां से राजवीर पहलवान भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरे और उन्होंने काफी कम अंतर मात्र 748 वोटों से बसपा प्रत्याशी हिलाल अहमद कुरैशी को हराया। देखा जाए तो भाजपा अब तक हुए 16 विधानसभा चुनावों में यहां मात्र तीन बार ही अपना परचम फहरा सकी है। एक बार फिर वह इसके लिए प्रयासरत नजर आ रही है।