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सड़कों में खामियों का भुगत रहे खामियाजा

कमल वाष्र्णेय, हाथरस बेजान सड़कें भी जान पर भारी पड़ रही हैं। जिले में जिस औसत में हादसे होते है

By Edited By: Published: Thu, 08 Dec 2016 12:38 AM (IST)Updated: Thu, 08 Dec 2016 12:38 AM (IST)
सड़कों में खामियों का भुगत रहे खामियाजा

कमल वाष्र्णेय, हाथरस

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बेजान सड़कें भी जान पर भारी पड़ रही हैं। जिले में जिस औसत में हादसे होते हैं, उससे तो यही लगता है कि ये खून की प्यासी हैं। हर साल सैकड़ों हादसे, औसत डेढ़ सौ मौतें व घायलों की संख्या सैकड़ों में। यह आंकड़ा भयावह है। खस्ता हाल सड़कों के कारण लोग अकाल मौत मर रहे हैं। सड़कों की बनावट, खड्डे, तीखे मोड़, हाइवे के दोनों ओर आबादी, संकरी पुलिया पर रिफ्लेक्टर व अन्य सुरक्षा इंतजामों की अनदेखी ही मानव जीवन पर भारी पड़ रही है।

सड़कों में गड्ढे : जिले की सड़कों की हालत किसी से छिपी नहीं है। दो साल पहले ही बनकर तैयार हुए आगरा-अलीगढ़ हाइवे को छोड़ दें तो मथुरा-बरेली, अलीगढ़-एटा मार्ग, जलेसर रोड आदि रास्ते खस्ता हाल हैं। ये तो प्रमुख मार्ग हैं। गांव-देहात को जोड़ने वाले रास्तों का हाल तो और भी बुरा है। रोड की खामियां अब तक सैकड़ों ¨जदगियां लील चुकी हैं। पिछले साल की ही बात है। सिकंदराराऊ-अलीगढ़ रोड पर गड्ढे के कारण दंपती की मौत हो गई थी। 29 अगस्त 2015 को रवि कुमार (35) पुत्र ब्रह्मानंद निवासी मैनपुरी अपनी पत्नी सोनी (30), नौ माह की बेटी ओसी व छोटे भाई अनिल कुमार के साथ एक बाइक पर अलीगढ़ से घर लौट रहे थे। ¨सचाई विभाग कॉलोनी के सामने गड्ढे के कारण बाइक अनियंत्रित हुई। रवि जब तक बाइक संभालते पीछे से आ रहे ट्रक ने रौंद दिया। हादसे में रवि व उनकी पत्नी की मौत हो गई थी। 30 अक्टूबर 2016 को सिकंदराराऊ में एटा रोड पर चाचा-भतीजे की भी इसी तरह मौत हो गई थी। सड़क पर पड़ी गिट्टियों के कारण बाइक फिसल गई थी। पीछे से आ रहे वाहन ने उन्हें रौंद दिया था।

ब्लैक स्पॉट : जिले में दो दर्जन से अधिक स्थल ब्लैक स्पॉट में चयनित हैं। तीन फरवरी 2015 की रात मथुरा रोड पर करबन नदी पुल पर ट्रक ने टेम्पो के परखच्चे उड़ा दिए थे। टेम्पो चालक का सिर धड़ से अलग हो गया था। इनके अलावा तीन महिलाओं की दर्दनाक मौत हुई थी। मैंडू रोड पर एआरटीओ दफ्तर के पास गंदा नाला स्थित पुलिया भी खतरनाक है। इससे आगे चलें तो हाथरस जंक्शन में कैलोरा चैराहा, हसायन में सलेमपुर चौकी व जाऊ नहर स्थित पुल आदि। सलेमपुर चौकी के पास इस साल तीन दर्जन से अधिक दुर्घटनाएं हुई।

सिकंदराराऊ में जीटी रोड भी खस्ता हाल है। रक्षाबंधन पर गड्ढे के कारण असंतुलित हुई बाइक ट्रक की चपेट में आ गई थी। मौके पर दंपती की मौत हो गई थी। आगरा रोड पर शहर में घास की मंडी, गांव गिजरौली, चंदपा में नगला भुस व केवल गढ़ी आदि में

ऐसे ही खतरनाक जगह हैं। अलीगढ़ रोड पर गांव रूहेरी, जो कि हाइवे के सहारे है। सासनी से आगे हनुमान चौकी दुर्घटना बाहुल्य है। दो साल पहले इन दुर्घटना बाहुल्य जगहों पर रिफ्लेक्टर व पीली-काली पट्टी लगवाए गए। दुर्घटना बाहुल्य का साइन बोर्ड भी लगा तथा ब्रेकर भी लगाए गए। इन दो सालों में ब्रेकर उखड़ चुके हैं तथा रिफ्लेक्टर टूट चुके हैं। धूल के कारण पीली-काली पट्टी भी दिखाई नहीं देती। एक-दो जगह छोड़कर दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र के साइन बोर्ड भी उखड़ चुके हैं।

डिवाइडर : यूं तो डिवाइडर ट्रैफिक व्यवस्था को संभालने में सहायक होते हैं, लेकिन जिले के डिवाइडर जानलेवा हैं। इस साल डिवाइडर से टकराकर दर्जनों लोग घायल हुए। अधिकतर दुर्घटनाएं रात में हुईं, जब रिफ्लेक्टर न होने के कारण डिवाइडर नजर नहीं आते। तालाब चौराहे पर वर्ष 2013 में डिवाइडर बनकर तैयार हुए। तब से अब तक चार दर्जन से अधिक छोटे-बड़े वाहन डिवाइडर से टकरा चुके हैं। रात को ट्रकों के डिवाइडर पर चढ़ जाने के कारण यहां रिफ्लेक्टर पोल लगवाए गए, लेकिन दुर्घटनाओं के कारण सभी पोल टूट चुके हैं। धूल व धुएं के कारण डिवाइडर काले पड़ चुके हैं। रात को नजर ही नहीं आते। यही हाल सासनी व सिकंदराराऊ में बने डिवाइडर्स का है।

खड्डे व पटरी : अलीगढ़-एटा मार्ग खस्ता हाल है। जीटी रोड होने के बावजूद जगह-जगह खड्डे हैं। ये खड्डे वाहनों की फिटनेस बिगाड़ने के साथ-साथ दुर्घटना को भी दावत देते हैं। सादाबाद-सहपऊ व सादाबाद-राया मार्ग की भी कुछ यही स्थिति है। मथुरा-बरेली मार्ग व आगरा-अलीगढ़ रोड पर नगला भुस से नगला उम्मेद तक पटरियां सड़क के समतल नहीं हैं। रफ्तार के दौरान ये स्थिति जानलेवा होती है।

हाइवे पर आबादी : नेशनल हाइवे-93 पर फर्राटा भरते वाहन अब तक सैकड़ों की ¨जदगी थाम चुके हैं। बिसाना, केवलगढ़ी, नगला भोजा, कपूरा, हतीसा, लहरा, दयानतपुर, नगला उम्मेद, रूहेरी आदि दर्जनों ऐसे गांव हैं जो हाइवे के सहारे बने हैं तथा इन गांवों को जाने वाले रास्ते हमेशा व्यस्त रहते हैं। हाइवे पर वाहन की स्पीड 100 से 120 किमी प्रति घंटा तक रहती है। ऐसे में रोड क्रास करने वाले व्यक्ति से एक चूक हो जाए तो उसकी खैर नहीं। इन आबादी वाले इलाकों में सबसे अधिक सड़क हादसे होते हैं।

नहीं शुरू हो सकी

ट्रैफिक लाइट्स

हाथरस मे ट्रैफिक लाइट सिस्टम का सपना अधूरा ही रहा। पूर्व डीएम सूर्यपाल गंगवार ने तालाब चौराहे की तस्वीर बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन इसमें रेलवे ने अड़ंगा लगा दिया। सब जगह केबल बिछ गई, लेकिन रेलवे लाइन के चलते अलीगढ़ रोड स्थित लाइट्स तक केबल नहीं बिछ सकी। रेलवे की अनुमति न मिलने के कारण ट्रैफिक लाइट्स के रूप में लाखों रुपये धूल फांक रहे हैं। लाइट्स न होने के कारण यातायात अव्यवस्थित रहता है तथा आए दिन वाहन भिड़ते रहते हैं।

सड़क किनारे वाहन

बने जान के दुश्मन

एक महीने पहले की ही बात है, कोतवाली हाथरस गेट के बाहर एक मेटाडोर अनियंत्रित होकर पलट गई थी। कोतवाली के बाहर खड़े ट्रक के कारण यह हादसा हुआ था। 18 घंटे बाद जब मेटाडोर उठाई गई, तब पता चला कि हादसे में एक युवक की भी मौत हुई है। पुलिस कस्टडी में आने वाले वाहन जगह न होने के कारण सड़क किनारे खड़े रहते हैं। कोतवाली सदर व गेट के बाहर ट्रक, मेटाडोर व कारों का जमावड़ा है। यही नहीं ट्रांसपोर्टनगर न होने के कारण तालाब चौराहे से बंबा तक ट्रक सड़क के सहारे ही खड़े रहते हैं। फुटपाथ को पार्किंग के रूप में प्रयोग किया जाता है।

पैच वर्क के नाम पर

करोड़ों के वारे-न्यारे

हाथरस : अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत से सड़क निर्माण का कार्य मानकों के अनुरूप नहीं हो पाता। यही वजह है कि चंद सालों में सड़कें जवाब दे देती हैं। जानकारी के अनुसार वर्ष 2014 में नेशनल हाइवे-91 पर अलीगढ़ से बेवर तक की मरम्मत के लिए लगभग पांच सौ करोड़ रुपये का टेंडर उठा था। टेंडर मिलने पर युद्धस्तर पर काम भी हुआ, लेकिन कुछ दिन बाद ही काम ठप हो गया। जीटी रोड की हालत टेंडर की हकीकत बयां करती है। अलीगढ़-एटा रोड की हालत आज भी खस्ता है। अन्य निर्माण एजेंसियां भी पैच वर्क के नाम पर करोड़ों के वारे-न्यारे करती हैं। अलीगढ़ रोड पर रुहेरी तिराहे से लेकर आगरा रोड पर नगला भुस तिराहे तक सड़क की हालत खस्ता है। तालाब चौराहे पर तो पैच वर्क इस तरह किया गया कि सड़क ही ऊंची-नीची हो गई।


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