काश! डीएम दफ्तर में होते..
, हाथरस : यह दुखद ही था, कि जिलाधिकारी उस वक्त कलेक्ट्रेट में नहीं थे। अगर वे होते तो गोपाल बघेल को
, हाथरस : यह दुखद ही था, कि जिलाधिकारी उस वक्त कलेक्ट्रेट में नहीं थे। अगर वे होते तो गोपाल बघेल को निश्चित न्याय मिलता और उसकी जान बच जाती। यह चर्चा आम रही।
गोपाल बघेल पुलिस का सताया हुआ था। जैसा कि उसने सुसाइट नोट में लिखा है उससे साफ उजागर हो रहा है कि कोतवाली हाथरस गेट पुलिस उसे ठीक उसी तरह टार्चर कर रही थी, जिस तरह कोई डॉन चौथ की डिमांड करता है। फर्क सिर्फ इतना था कि डॉन जान से मारने की धमकी देते है। उसे किसी ने यह सलाह दी होगी कि उसकी जान जिलाधिकारी ही पुलिस से बचा सकते हैं। चूंकि जिलाधिकारी शमीम अहमद के बारे में जगजाहिर है कि वे अपने दफ्तर में पहुंचने वाले हर व्यक्ति की पीड़ा सुनते हैं और उसका निस्तारण कराने में रुचि लेते हैं। इसे गोपाल बघेल की किस्मत ही खराब कहेंगे कि जब वह पहुंचा जिलाधिकारी कलेक्ट्रेट में नहीं थे। काश कलेक्ट्रेट में जिलाधिकारी उस वक्त मौजूद होते या फिर गोपाल ही थोड़ी देर इंतजार कर लेता तो शायद बच जाता।