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बीस साल बाद अखईपुर गैंग की दस्तक

कृष्णबिहारी शर्मा, हाथरस अखईपुर का जो आपराधिक गैंग बीस साल पहले दफन हो चुका था, वह एक बार फिर

By Edited By: Published: Sun, 05 Jul 2015 01:01 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2015 01:01 AM (IST)
बीस साल बाद अखईपुर गैंग की दस्तक

कृष्णबिहारी शर्मा, हाथरस

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अखईपुर का जो आपराधिक गैंग बीस साल पहले दफन हो चुका था, वह एक बार फिर सिर उठाने को उतावला है। अपने बड़े भाई दिलीप की हत्या के प्रतिशोध में अपराध जगत में तहलका मचाने वाले राजेश शर्मा उर्फ टोंटा ने इस गैंग को जमींदोज कर दिया था। उसके खात्मे के बाद एक बार फिर से इस गैंग ने सिर उठाना शुरू किया है। इस गैंग में अब वे पुराने चेहरे तो नहीं, मगर उन हिस्ट्रीशीटरों के वंशज जरूर हैं। समय रहते पुलिस ने इस ओर ध्यान न दिया तो हालात भयावह हो सकते हैं।

फ्लैशबैक :

बता दें कि बीस साल पहले इस शहर में अखईपुर के गैंग का तहलका था। गैंग के सरगना थे भूपेंद्र व प्रताप। अपराध जगत में यह एक ऐसी जोड़ी थी कि जिनके नाम से ही शहर के व्यापारियों की रूह कांप जाती थी। इन्हीं के नाम पर हाथरस जंक्शन क्षेत्र के गांव अखईपुर का सिक्का शहर में चलता था। इस गैंग के एक सदस्य की तकरार वर्ष 1995 में शहर के रामलीला मैदान निवासी राजेश शर्मा उर्फ टोंटा से हो गई। राजेश उस वक्त तक न तो अपराधी था और न ही इस ओर उसके कदम बढ़े थे। वह कपड़ा कारोबारी और क्रिकेट का खिलाड़ी था। यह तकरार इतनी तूल पकड़ गई कि राजेश ने अखईपुर गैंग के एक सक्रिय सदस्य पर हमला बोल दिया। इससे बौखलाए अखईपुर गैंग के सरगनाओं ने राजेश के बड़े भाई दिलीप शर्मा को 23 मई-96 को नगर पालिका परिषद के ठीक सामने दिनदहाड़े गोलियों से भून डाला। बस यहीं से राजेश टोंटा का अपराध जगत में पदार्पण हुआ। फिर तो अखईपुर गैंग और राजेश टोंटा के बीच तू डाल-डाल मैं पात-पात का खेल शुरू हो गया। इसी क्रम में वर्ष 2002 में भरी कचहरी में भूपेंद्र को गोलियों से भून डाला गया। इसके बाद वर्ष 2007 में प्रताप की भी उसी के गांव अखईपुर में हत्या कर दी गई।

गैंग का सफाया :

वैसे तो अखईपुर गैंग राजेश टोंटा के अपराध जगत में सक्रिय होने के बाद से ही हिल गया था, मगर भूपेंद्र व प्रताप की हत्या के बाद यह पूरा गैंग ही खत्म हो गया। गैंग के जो सदस्य रह गए वे या तो शहर छोड़ गए या फिर उनकी बदमाशी जंक्शन क्षेत्र तक ही सिमट गई। अपराध जगत में सक्रिय हो जाने से भले ही राजेश भी ज्यादातर फरारी में ही रहा, मगर अखईपुर गैंग से जुड़े बदमाश शहर की ओर रुख करने की हिम्मत नहीं जुटा सके।

फिर से सिर उठाया :

अब जब राजेश मथुरा जेल में गैंगवार के बाद हाइवे पर पुलिस हिरासत में मारा जा चुका है तो बीस साल बाद अखईपुर गैंग फिर से शहर में दस्तक देता नजर आ रहा है। पुराने हिस्ट्रीशीटरों के वंशज इसमें शामिल हैं। फरवरी से ही उसकी गतिविधियां लगातार बनी हुई हैं, मगर वह पुलिस की नजर में नहीं आई थी। शनिवार को यह भी हो गया। बिजली काटन मिल के पास एक भूखंड पर यह गैंग हथियारों के बल पर जबरन कब्जा करने पहुंच गया। जमीन के मालिक को जब इसकी भनक लगी तो वह दौड़ा-दौड़ा पुलिस की शरण में पहुंचा। पुलिस मौके पर गई। यह देख वहां भगदड़ मची, फिर भी पुलिस ने तीन युवकों को दबोच लिया। चर्चा है कि ये लोग भारी मात्रा में असलहों से लैस थे। अगर जमीन मालिक सीधा पहुंच गया होता तो बड़ा हादसा हो सकता था। पुलिस मौके से कोई असलाह बरामद नहीं कर सकी।

हल्की कार्रवाई संदेह में :

पुलिस या तो ठीक से मजमून नहीं समझ पाई, या फिर तैनात पुलिस अधिकारियों को यहां के आपराधिक इतिहास की जानकारी नहीं है। पकड़े गए युवकों के खिलाफ मात्र शांतिभंग के आरोप में कार्रवाई कर इतिश्री कर ली गई।

गैंगवार की संभावना :

भले ही अब राजेश इस दुनिया में नहीं है, मगर उससे जुड़े रहे व समर्थक शातिर इस शहर में आज भी मौजूद हैं। वे भी अपने कद बढ़ाने के लिए लालायित हैं। ऐसे में अखईपुर के शातिरों का सक्रिय होना साफ संकेत दे रहा है कि गैंगवार की भी पृष्ठभूमि बन सकती है।


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