कमीशनखोरी से डूबी मनरेगा की लुटिया
संवाद सहयोगी, हाथरस : गत वित्तीय वर्ष में मनरेगा में काम की गति बेहद धीमी रहने की परतें धीरे-धीरे उध
संवाद सहयोगी, हाथरस : गत वित्तीय वर्ष में मनरेगा में काम की गति बेहद धीमी रहने की परतें धीरे-धीरे उधड़ने लगी हैं। ब्लाक पर तैनात सहायक कार्यक्रम अधिकारी व लेखाकार की साठ-गांठ से पंचायतों में होने वाले काम के बदले भुगतान पर मोटा कमीशन लिया जाता रहा है। मनरेगा में इलेक्ट्रॉनिक्स फं¨डग सिस्टम लागू होने के बाद तमाम प्रधानों के हाथ बंध गए। इससे उनके द्वारा कमीशन दिए जाने में दिक्कत बढ़ गई और मनरेगा की गाड़ी पटरी से उतर गई। बीते वित्तीय वर्ष में महज 5 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाया है, जबकि इससे पूर्व इसी योजना में 20 करोड़ रुपये खर्च किया गया था।
इस बार मनरेगा की पटरी से उतरी गाड़ी को ठीक से चलाने के लिए मुख्य विकास अधिकारी सैयद जावेद अख्तर जैदी ने ड्राइवर की कमान खुद संभाल ली है। उन्होंने मनरेगा के पिछड़ने के कारणों की तलाश शुरू की है तो उन्हें यह जानकारी मिली है कि ई-चालान जेनरेट करने से लेकर भुगतान होने तक प्रधानों को ब्लाकों पर लगाए गए सहायक कार्यक्रम अधिकारी व लेखाकार को भेंट चढ़ानी पड़ती थी। तभी वह सही तरीके से मनरेगा का संचालन करा रहे थे, लेकिन केंद्र सरकार ने गत वर्ष इस व्यवस्था में ई-एफएमएस सिस्टम लागू कर दिया है, जिससे लेबर से लेकर मैटेरियल तक का भुगतान सीधे मजदूरों व फर्म संचालकों के खाते में जाएगा। इसका टैक्स भी इन व्यापारियों को चुकाना होगा। इसके लिए फर्म का सेल्स टैक्स में पंजीयन होना जरूरी है, जबकि इससे पहले केवल फर्म के बिल पर उन्हें भुगतान मिल जाता था। इस नई व्यवस्था से पंचायत व अन्य का कमीशन पूरी तरह बंद हो गया है। ब्लाकों पर कमीशनखोरी से तमाम प्रधानों ने मनरेगा कार्यों में रुचि लेना बंद कर दिया है। इससे मनरेगा के कार्यों का ढर्रा जिले में पटरी से उतर गया। बीते वित्तीय वर्ष में जिले की पोजीशन 75वें स्थान पर थी, लेकिन अब इसे फिर से पटरी पर लाने का प्रयास शुरू हो गया है। काम की गति बढ़ाने के लिए सभी को अलर्ट कर दिया गया है। कहीं से भी शिकायत मिलने पर कड़े एक्शन की बात कही गई है। नियमित मानीट¨रग भी शुरू हो गई है।
एक साल से मानदेय
नहीं, कैसे चले काम
हाथरस : मनरेगा योजना में मजदूरों को काम दिए जाने सहित मनरेगा खर्च की गति बेहद धीमी रहने का असर मनरेगा में लगे कार्मिकों को भी झेलना पड़ा। कार्य के सापेक्ष व्यय न होने से जिले में कंटीजेंसी क्रियेट नहीं हो पाई। इससे एक साल से इन कार्मिकों को मानदेय का संकट भी झेलना पड़ा। ऐसे में इनके खर्च कैसे पूरे हुए। इसे लेकर भी उंगली उठ रही है।
मनरेगा योजना में सहायक कार्यक्रम अधिकारी, तकनीकी सहायक, सहायक लेखाकार व गांवों में रोजगार सेवक की सेवायें ली गईं थीं। इन्हें संविदा के आधार पर नियुक्त किया गया था। संविदा कर्मी होने के कारण इन्हें ब्लाक पर तैनात एकाउंटेंट महत्व नहीं देते। इनके मानदेय का भुगतान भी समय से नहीं हो पाता। यह नियमित रूप से काम पर तो आए, लेकिन इनका कंटीजेंसी मद न बन पाने पर इनके मानदेय का करीब एक साल का बकाया है। जिसे लेकर यह आंदोलन भी कर चुके हैं, लेकिन कोई संतोषजनक स्थिति नहीं बन पाई है। लगातार काम पर आने पर इनके परिवार का खर्च कैसे पूरा हुआ, यह बड़ा सवाल है। इस बीच उन्हें 14.5 फीसद कमीशन लिए जाने की जानकारी हुई है। कार्य में गति लाने के लिए अब सीडीओ इनके क्षेत्रों में बदलाव पर भी विचार कर रहे हैं, ताकि मनरेगा कार्य तेज गति पकड़ सके।