आयौ बंसत आयौ बसंत, मन में उमंग लायौ बसंत
कार्यालय संवाददाता,हाथरस: सद्भाव साहित्य मंच हाथरस जनपद के द्वारा मां शारदे के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में काव्य संध्या का आयोजन किया। जिसमें बसंत के पावन पर्व पर मां शारदे को सभी वाणी पुत्रों द्वारा मां की बधाइयां अपने काव्य के माध्यम से दी।
काव्य संध्या का शुभारंभ मां शारदे की वाणिपाणि वंदना से हुआ। मां सरस्वती का गुणगान किया गया। काव्य संध्या में कविगणों एवं उपस्थित महानुभावों ने मां के जन्म दिन पर अपने भाव पुण्य अर्पित किए। कवि फूल सिंह पौरुष ने अपनी कविता इस प्रकार सुनायी- भाई ने भाई से भाई का विश्वास हटाया है, गई शराफत तेल लेने यह आज समझ में आया है। ओज कवि हरिओम दास सांचा ने कविता इस प्रकार सुनायी- खिलते उपवन, महक उठते चमन, जब छाने लगता चहकता बंसत। काव्य संध्या के संयोजक कवि दुर्गा प्रसाद पौद्दार ने सुनायी- आयौ बंसत आयौ बसंत, मन में उमंग लायौ बसंत। अध्यक्षता कर रहे विष्णु कुमार गौड़ ने सुनायी- अहंकार तज राम भजन कर सत्कर्मो का सिचन करले, नियति कर्म पर आधारित है इस सच को ही भूल गया मैं, कितनी बार गया हूं मरघट कितने अग्निदाह देखे है, मेरे संग यही होना है इस सच को ही भूल गया मैं। बाबा देवी सिंह निडर ने- सुख सुविधाओं का अंत है, कैसा ये बसंत है। काव्य संध्या में मुरारी लाल, वीरबल, देवी सिंह निडर, रामनिवास अग्रवाल, पवन कुमार, सुभाष सिंह पौरुष, अशोक कुमार, राकेश रसिक, रामखिलाड़ी, भगवंत सिंह आदि थे।
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