आयौ बसंत सखी, विरहा कौ अंत सखी..!
कार्यालय संवाददाता, हाथरस : खेतों में सुरीली बांसुरी बजाती सरसों। चौराहों पर होली का डाढ़ा। ऋतु परिवर्तन का आगाज। शिक्षा,वाणी,गीत और संगीत के मंदिरों में सरस्वती पूजन। 'आयौ बसंत सखी,विरहा कौ अंत सखी, वन-वन में छायी बहार..!' सरीखे कवियों की वाणी से गूंजते प्रीत-प्यार के बोल। बस,यही आलम तो है,जो अहसास कराता है बसंत पंचमी की आमद का।
माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को यह पर्व मनाया जाना है। बसंती पचंमी से मौसम परिवर्तन होता है। इसे ऋतुराज कहा जाता है। खेतों में सरसों लहराती हुए नजर आ रही है। लोगों में इसे लेकर अपार उमंग है। इस दिन स्कूलों में मां सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है,क्योंकि इसे मां शारदे का जन्म दिन मनाया जाता है। मंदिरों में भी ठाकुर जी को पीली पोशाक पहनायी जाती है। बेसन के लड्डू,पीले चावल आदि पकाकर भोग भी लगाया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी होगा। इसकी तैयारियों कर ली गई है,बच्चों में भी इसे लेकर उत्साह है।
इधर रामदरबार मंदिर, गंगा महारानी मंदिर, गली चौबे दिन महादेव मंदिर, पंजाबी क्वार्टर स्थित मंदिर पर भी भजन कीर्तन आदि भी होंगे। बसंत पंचमी से ही होली का सवा महीना रह जाता है। बसंत पंचमी पर जगह-जगह डांडा पूजन भी होता है।
शहर के विद्वान पंडित सुरेश चन्द्र मिश्र और ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि वसंत पंचमी को ऋतुराज भी कहा जाता है, क्योंकि छह ऋतुओं में यह सबसे पहले है। उन्होंने बताया कि इसी दिन से ब्रज में होली उत्सव का शुभारंभ होता है।
वर्ष 2028 में होगा दो दिनी पर्व
सासनी : वसंत पंचमी का पर्व आगामी वर्ष 2028 में दो दिन का होगा। हिन्दू मान्यता के अनुसार वसंत पंचमी को अबूझ महूर्त भी कहते हैं। इस दिन बच्चों को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है। पितृ तर्पण किया जाता है। इस दिन पहनावा भी परंपरागत होता है। पुरुष पीला कुर्ता पायजामा तथा महिलाएं पीली साड़ी पहनती हैं। खास तौर से इस दिन को शिक्षा की देवी मां सरस्वती के दिन के रूप में मनाया जाता है। पशु को मनुष्य बनाने का श्रेय शिक्षा को दिया जाता है। वसंत पंचमी 14 एवं 15 फरवरी दो दिन मनाई जाएगी। सन् 1991 -1992 व 1993 में लगातार दो दिन बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया गया था।
आज से होगा गायन
हाथरस : शहर के विद्वान ज्योर्तिषाचार्य पं.उपेन्द्र नाथ चतुर्वेदी के अनुसार दिल्ली वाला मोहल्ला स्थित ठा.मथुरा नाथ महाराज पर वसंत पंचमी से लेकर धूल तक कार्यक्रम होंगे। दोपहर के समय ठाकुरजी की भोजी होगी। शाम को पांच बजे से मंदिर परिसर में समाज गायन भी होगा।
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