बेस्वाद भोजन से खाली रहते पेट
हरदोई, जागरण संवाददाता : स्कूलों में बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए मिड-डे मील में भले ही प्रति
हरदोई, जागरण संवाददाता : स्कूलों में बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए मिड-डे मील में भले ही प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये व्यय किए जा रहे हों पर छात्रों को स्वाद नहीं मिल पा रहा है। विद्यालयों में न तो मेन्यू के अनुसार भोजन पकाया जाता है और न उसकी गुणवत्ता ही मानक के अनुरूप होती है। यही वजह है कि विद्यालय में पढ़ने वाले तमाम बच्चों ने भोजन लेना ही छोड़ दिया है।
मध्याह्न भोजना योजना के तहत सरकारी और अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में पढ़ने वाले कक्षा एक से आठ तक के विद्यार्थियों को दोपहर में पका पकाया भोजन उपलब्ध कराया जाता है। इसके लिए विभाग की ओर से विद्यालयों को छात्र संख्या के आधार पर कनवर्जन कास्ट उपलब्ध कराई जाती है। साथ ही बच्चों को भोजन देने के लिए चावल और गेहूं भी उपलब्ध कराया जाता है। इसके लिए छात्र संख्या के आधार पर रसोइया की नियुक्ति की गई हैं ताकि विद्यार्थियों को पका पकाया उपलब्ध कराया जा सके। जनपद में परिषदीय विद्यालयों के अलावा अशासकीय सहायता प्राप्त जूनियर व इंटर कालेज में पढ़ने वाले कक्षा आठ तक के विद्यार्थियों को भोजन उपलब्ध कराया जाता है। प्राथमिक विद्यालय तीन लाख 77 हजार 934 और जूनियर में एक लाख 31 हजार 884 विद्यार्थी शामिल हैं, जिनको प्रतिदिन भोजन उपलब्ध कराने पर दावा किया जा रहा है। विभाग मिडडे मील में कनवर्जन कास्ट के रूप में एक वर्ष में 2226.53 लाख रुपये व्यय किए जा रहे हैं। प्राथमिक विद्यालय के छात्रों पर 1447.40 लाख रुपये और जूनियर के विद्यार्थियों पर 779.13 लाख रुपये शामिल हैं। वहीं लगभग 10 हजार रसोइयों के मानदेय पर लाखों रुपये प्रतिमाह व्यय किए जा रहे हैं। इसके बावजूद विद्यालयों के विद्यार्थियों को मेन्यू और गुणवत्तायुक्त भोजन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।
खींचतान में फंसी योजना : स्कूलों में खींचतान में योजना फंसी रहती है। शनिवार को प्राथमिक विद्यालय बरगदी इसकी गवाही दे रहा था। तीन दिन से मिड-डे मील नहीं बनाया गया है। विद्यार्थी बगैर मिड्डे मील को वापस लौट रहे हैं। विद्यालय प्रधानाध्यापक का कहना है कि प्रधान राशन नहीं उपलब्ध करा रहा है। वहीं प्रधान का तर्क है कि प्रधानाध्यापक राशन लेने नहीं आते। रसोइयों का कहना है कि वह छह किलोमीटर राशन लेने नहीं जाएंगी। इसका प्रभाव योजना पर पड़ रहा है। इसी प्रकार अधिकांश स्कूलों में मिडडे मील की खींचतान है। कहीं ग्राम प्रधान और प्रधानाध्यापक के बीच तो कहीं रसोइयों व अध्यापक के बीच विवाद चल रहा है। ऐसे में बच्चों को भूखे पेट वापस होना पड़ रहा है।
कागजों में फल और मोबाइल पर दूध : मिडडे मील की मानीट¨रग के लिए आईबीआरएस सिस्टम लागू है। जिसके तहत अध्यापकों के मोबाइल नंबर से मिडडे मील प्राधिकरण द्वारा सूचना अंकित की जाती है। जानकारी देने का दायित्व प्रभारी के पास होता है। यही नहीं विद्यार्थियों को दूध का वितरण भी मोबाइल पर ही बेहतर ढंग से किया जा रहा है। वहीं फलों का वितरण कागजों में सिमट कर रह गया है। विद्यार्थियों को फल भले ही न मिलते हो, लेकिन कागजों में प्रति सप्ताह उनका बंटना तय है।
जुगाड़ से चलाया जाता काम
कहने को तो सभी विद्यालयों में मेन्यू के अनुसार ही खाना बनता है लेकिन कुछ विद्यालयों को छोड़ दें तो अधिकांश में ऐसा नहीं होता है। कहीं केवल चावल से काम चलाया जाता है तो कहीं सब्जी रोटी से। सब्जी में कागजों पर तो गुणवत्ता पूर्ण मसाले प्रयोग होते हैं लेकिन यह सब जुगाड़ से होता है। एक डिब्बा रख लिया जाता है और उसी में पूरे साल सामग्री रखी जाती है। डिब्बा खाली होते ही सामग्री भर दी जाती है।
यह तय है मेन्यू :
सोमवार : रोटी, सोयाबीन-दाल की बड़ी युक्त सब्जी
मंगलवार : चावल, दाल
बुधवार : तहरी व प्राइमरी में 150 ग्राम और जूनियर में 200 ग्राम मीठा दूध
गुरुवार : रोटी, दाल
शुक्रवार : तहरी
शनिवार : चावल, सोयाबीन युक्त सब्जी
-------
वद्यालयों में बच्चों को मेन्यू के अनुसार मिडडे मील दिया जाए। इसके लिए सभी खंड शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वह विद्यालयों का समय-समय पर निरीक्षण कर भोजन व्यवस्था सुनिश्चित करें। जहां पर भी मिडडे मील न बनने की शिकायत मिलेगी, वहां के जिम्मेदारों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी। जिन विद्यालयों में प्रधान सहयोग नहीं कर रहे हैं उनका खाता हटाकर विद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष को शामिल किया जा रहा है।
मसीहुज्जमा सिद्दीकी, बीएसए