देवोत्थान एकादशी पर गंगा में स्नान कर की विष्णु पूजा
गढ़मुक्तेश्वर : देवोत्थान एकादशी के पावन अवसर पर खादर मेला और ब्रजघाट तीर्थनगरी में लाखों भक्तों न
गढ़मुक्तेश्वर :
देवोत्थान एकादशी के पावन अवसर पर खादर मेला और ब्रजघाट तीर्थनगरी में लाखों भक्तों ने गंगा में आस्था की डुबकी लगा भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह की रस्म अदा कराई।
गढ़ खादर में भर रहे कार्तिक पूर्णिमा स्नान मेले में तीसरा पर्व कहलाए जाने वाली देवोत्थान एकादशी पर रविवार
को सात लाख से भी अधिक श्रद्धालुओं ने मोक्ष दायिनी गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। वहीं ब्रजघाट तीर्थनगरी में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, वैस्ट यूपी के जनपदों से आए आठ लाख से अधिक भक्तों ने पतित पावनी में डुबकी लगाई। गंगा में डुबकी लगाने के बाद भक्तों ने किनारे पर बैठे पंडितों से भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह की कथा सुन उन्हें दक्षिणा दी। इस दौरान गन्ना, शकरकंद, ¨सघाड़ा, मूंगफली, मूली समेत विभिन्न प्रकार की सामग्री से पूजा अर्चना भी की गई। खादर मेले में पड़ाव डाल चुकीं महिलाओं ने अपने टैंट-तंबुओं में पूजा अर्चना कर भगवान शालिगराम और तुलसी के विवाह की रस्म भी अदा कराईं। ब्रजघाट में महानगरों से आए धनाढ्यों ने गरीब-निराश्रितों को भोजन और गर्म वस्त्रों का दान कर पुण्य अर्जित किया।
शिव मंदिर के पुजारी पंडित शिवम शर्मा ने बताया कि श्रावणी मास की शुक्ल पक्ष देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु क्षीर सागर में चले जाते हैं। जिससे इस दौरान ब्याह-शादी जैसे मांगलिक कार्य पर पूरी तरह रोक लग जाती हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को सूर्य नारायण भगवान विष्णु क्षीर सागर से जाग जाते हैं। जिन्होंने इस दिन सर्वप्रथम तुलसी से विवाह रचाया था। जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी के विवाह की रस्म अदा करते हैं। वे पापों से मुक्त होकर सुख-शांति और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।
नट समुदाय में देवोत्थान एकादशी के दिन विवाह होने की परंपरा
नट समुदाय में वर्ष भर के भीतर केवल देवोत्थान एकादशी के दिन ही ब्याह शादी होती हैं। फिर समूचे वर्ष उनके घरों में बैंडबाजे और शहनाइयों की गूंज नहीं सुनाई पड़ती है। हैदरपुर, सलोनी, धनपुरा समेत गढ़ क्षेत्र के कई गांवों में नट समुदाय के लोग रहते हैं, जिनमें रविवार को ब्याह शादियों की खूब भरमार रही। बताया गया है कि नट समाज में यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है।