नाम करने वाले ही हुए गुमनाम
हमीरपुर जागरण संवाददाता: आर्थिक कमी और परिवार का भार इतना था कि ट्रैक को बीच में ही छोड़ना पड़ा। एक दश
हमीरपुर जागरण संवाददाता: आर्थिक कमी और परिवार का भार इतना था कि ट्रैक को बीच में ही छोड़ना पड़ा। एक दशक तक जिले का नाम रोशन करने वाले धर्मेन्द्र ही इसका शिकार नहीं बल्कि जिले में आधा दर्ज खेल प्रतिभाएं ऐसी रहीं जिनके प्रदर्शन से जिले का नाम खूब रोशन हुआ। शील्ड भी जीते, आगे आने वाली प्रतिभाओं का मार्ग भी प्रशस्त किया, लेकिन जब मदद की बारी आई तो अपनों से ही वह हार गए। सही समय पर शासन से प्रोत्साहन न मिलने के कारण उन्हें अपने परिवार की देखरेख के लिए गृहस्थी की ट्रैक पर आकर स्टेडियम की ट्रैक छोड़ देनी पड़ी। आखिर जिले का नाम रोशन करने वाले वह खिलाड़ी आज गुमनाम हो गए हैं।
शहर की रंजना खंगार ने 2011 में इंदिरा मैराथन में जिले का नाम रोशन किया था। उनका सपना एक बार फिर से ट्रैक पर लौटने का है। वैसे वह इस समय झांसी में नौकरी कर रही हैं, लेकिन उनका कहना है कि वह फिर इस ओर लौटेंगी। उनका कहना है कि सरकार को खिलाड़ियों की सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए। उचित सुविधाएं और सही माहौल मिले तो जिले में प्रतिभाओं की कमी नहीं है।
ऐसी ही जिले की एक प्रतिभा आज गुमनाम होकर अपने घर गृहस्थी में सिमट कर रह गई है। शहर के धर्मेन्द्र दीक्षित जो कि शहर में ही एक दुकान कर अपने परिवार को पालन पोषण कर रहे हैं, कहते हैं, 1984 से लेकर 1993 तक विभिन्न दौड़ प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। इस दौरान कई प्रदेशस्तरीय प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया और जिले के लिए शील्ड भी जीतीं। बाद में धीरे-धीरे आर्थिक कमियों के कारण उन्हें खेल से दूर होना पड़ा। कारण कि शासन की ओर से कोई खास सुविधाएं नहीं मिलीं। इसी तरह जिले में अन्य कई प्रतिभाएं रहीं जिन्होंने ने अपनी प्रतिभा के दम कर जिले का नाम खूब रोशन किया। बाद में उपेक्षाओं का शिकार होकर वह गुमनामी की दुनिया में खो गए। हाकी, वैडमिंटन में मोहम्मद मतीन, एथलेटिक्स में धर्मेन्द्र दीक्षित, बालीबाल में छत्रपाल, ऐसी प्रतिभाएं रहीं जो और ऊपर जा सकती थीं, लेकिन आर्थिक कमियों और उपेक्षाओं के कारण आधे रास्ते पर ही गुम हो गईं। जिले के फुटबाल प्लेयर संजय परमार ने बताया कि यहां सुविधाओं की कमी के कारण दिक्कतें आती हैं।
''खिलाड़ियों को सपोट मिले तो अभी भी बहुत सी ऐसी प्रतिभाएं हैं जो राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकती हैं।,'' रंजना खंगार, धावक।
''1984 से लेकर 1993 तक खेले हैं, एथलेटिक्स प्रतियोगिता में प्रदेश स्तर पर तीसरा नंबर आया था, जिले में कोच न होने से दिक्कत आती है।'' धमेन्द्र दीक्षित, धावक।