चुनावी चकचक से बजट की लूट
हमीरपुर जागरण संवाददाता : पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट ने अब तक ठंडे पड़े विकास की रफ्तार अचानक दे दी है
हमीरपुर जागरण संवाददाता : पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट ने अब तक ठंडे पड़े विकास की रफ्तार अचानक दे दी है। नए वित्तीय वर्ष के पहले तीन माह में जहां मनरेगा पहले रेंग रही थी वहीं उसके अगले तीन माह में अचानक विकास कार्यो ने इतनी तेजी पकड़ी की मनरेगा चौथे टाप गेयर में है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि यह आंकड़ों की गति जमीन पर कहीं नजर नहीं आ रही है। गांवों की बदहाली वैसी की वैसी ही है।
पिछले साढ़े चार साल में गांवों के विकास फिक्र उतनी शिद्दत से नहीं हुई जितनी इन तीन महीनों में हो रही है। पंचायतों के चुनाव अब भारी गहमागहमी के बीच होते हैं। इसका कारण पंचायत में भारी भरकम आने वाला बजट है। ग्राम प्रधान किसी विधायक से कम हैसियत नहीं रखता। इन्हीं कारणों से बीते कई सालों से पंचायत चुनाव के प्रति राजनीतिक दलों की भी काफी रुचि होने लगी है। बजट की लूट का एक नजारा आंकड़ों में साफ देखा जा सकता है। साल 2015 में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत जिले की ग्राम पंचायतों ने मात्र सवा करोड़ रुपया तक ही खर्च कर सकीं। इसके बाद अप्रैल, मई और जून माह में ऐसी जादू की छड़ी घूमी कि मनरेगा में पांच करोड़ 14 लाख, 80 हजार रुपया खप गया। वहीं 13वें और राज्य वित्त में बीते वित्तीय वर्ष में दोनों मदों से कुल 14 करोड़ रुपया खर्च हुआ था। इससे पूर्व यह आंकड़ा दस करोड़ के करीब था। इस साल नए वित्तीय वर्ष में 13वें वित्त से में ही अकेले दो करोड़ रुपया पंचायतों को भेजा गया है। क्षेत्र पंचायत में कुछ ब्लाकों ने तो लूट मचा दी। वहीं कई ब्लाक एकमद शांत रहे।
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अचानक उमड़ा मतदाताओं पर प्यार
हां-हां सारे नाली सही होगी, लाइट भी लगेगी, हर दरवाजे रोशनी की व्यवस्था जल्द ही कर देंगे, जी हां यह है पंचायत चुनाव की आहट का असर। साढ़े चार साल प्रधान जी सीधे मुंह बात नहीं करते थे। वही अब दरवाजे-दरवाजे जाकर समस्याएं पूछने लगे हैं। इस समय पंचायतों का नजारा कुछ ऐसा ही दिख रहा है। कई पंचायतों में इसी साल सोलर लाइटें लगाई गई हैं जबकि चार साल गांव अंधेरे में ही रहा।
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चौपालों में बंट रहा काम
जो पिछले साढ़े चार साल में कभी देखने को नहीं मिला वह नजारा पिछले तीन माह से देखने को मिल रहा है। वर्तमान प्रधान, व दावेदार गांव के लोगों के साथ नुक्कड़ सभाओं में देखे जा सकते हैं। समस्याओं के निस्तारण से लेकर हर काम में हाथ भी बंटा रहे हैं। हैंडपंप से लेकर नाली खडं़जा तक सही कराने में जोश दिखा रहे हैं।
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क्षेत्र पंचायत के कार्यो में नहीं दिख रहे मानक
जिले में सात क्षेत्र पंचायतों में पांच साल के अंदर राज वित्त से करीब तीस लाख की राशि दी गई। इस राशि को पंचायत में नियमानुसार खर्च करना होता है लेकिन ऐसा देखने को नहीं मिला। अचानक इस चुनावी हलचल देख नए कार्य कराए जा रहे हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में चार ब्लाकों में मनरेगा के तहत भी काफी पैसा दिया गया। नए वित्तीय वर्ष में अभी मनरेगा से कोई कार्य नहीं हुआ।
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ठेंगे पर सारे नियम कायदे
पंचायतों में एक लाख रुपये से कम तक के बजट के काम ग्राम सभा द्वारा कराए जा सकते हैं। अधिक में टेंडर की व्यवस्था रहती है। लेकिन चुनावी वर्ष में वोट भुनाने के चक्कर में सारे नियम कायदे को ठेंगा दिखाया जा रहा है।
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बजट की लूट
पिछले वित्तीय वर्ष में मनरेगा योजना में कुल 49 करोड़ 24 लाख का बजट था। इसमें 31 करोड़ 4 लाख ही खर्च हुए थे। पहले तीन माह में मात्र दो करोड़ की खप पाया था। नए वित्तीय वर्ष में अप्रैल, मई और जून माह में ही अकेले पांच करोड़ 74 लाख 55 की डिमांड आई जिसमें पांच करोड़ 14 लाख, 80 हजार पंचायतों ने खपा भी दिया। पंचायत रात विभाग से तेरहवें और राज वित्त से पिछले वित्तीय वर्ष में 14 करोड़ खर्च हुआ था। नए वित्तीय वर्ष में दो माह के अंदर दो करोड़ खप गए।
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नए वित्तीय वर्ष में मनरेगा योजना के तहत खर्च हुए धन का ब्योरा
ब्लाक 1 अप्रैल से 18 जून तक आंकड़े
गोहाण्ड 51 लाख, 39 हजार
कुरारा 49 लाख, 45 हजार
मौदहा 81 लाख, 13 हजार
मुस्करा 38 लाख, 18 हजार
राठ 13 लाख, 88 हजार
सरीला 50 लाख, 61 हजार
सुमेरपुर 47 लाख, 53 हजार
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चुनावी वर्ष में गई धनराशि
314 ग्राम सभाओं को 20.14 करोड़
7 क्षेत्र पंचायतों को 3. 20 करोड़
मनरेगा से प्रति वर्ष 30 से 50 करोड़
हार के बाद भी नहीं छूटेगा पीछा
चुनावी साल में जिस अंदाज के साथ बजट की लूट मची है उससे साफ जाहिर होता है कि मानकों की अनदेखी हो रही है। सरकारी धन को लूटने की होड़ में यह बात सभी भूल गए कि जब कार्यो की जांच होगी तो पोल खुलेगी। पंचायतीराज एक्ट में दी गई व्यवस्था में यदि प्रधान के कार्यकाल के दौरान होने वाले कार्य में वित्तीय अनियमितता दिखती है तो इसकी रिकवरी उसी प्रधान से होगी जिसके कार्यकाल में काम हुआ था।
यह बोले जिम्मेदार
''मनरेगा पर कोई आचार संहिता लागू नहीं होती, जहां बजट जा रहा है उसकी मानीट¨रग समय-समय पर होती रहती है, आचार संहिता के दौरान नए काम नहीं पास होते हैं, पुराने प्रस्तावित कार्य होते रहते हैं, सत्यापन के दौरान कोई गड़बड़ी मिलेगी तो उसकी रिकवरी भी होगी।''
- अवधेश बहादुर सिंह, सीडीओ हमीरपुर।
''पंचायतों की डिमांड के अनुसार पैसा भेजा जाता है, जहां पैसा खर्च होता है उसकी एमआईएस रिपोर्ट भी फीड होती है, साथ ही कार्य का सत्यापन भी होता है।''
- इंद्रपाल सोनकर, पंचायतराज अधिकारी, हमीरपुर।