बाटम)योजना-1) जिला योजना पर भारी पड़ी लापरवाही
महोबा,जागरण संवाददाता : जिले के विकास के लिए विभिन्न विभागों के अधिकारियों द्वारा तैयार की गई जिला
महोबा,जागरण संवाददाता :
जिले के विकास के लिए विभिन्न विभागों के अधिकारियों द्वारा तैयार की गई जिला योजना उन्हीं के नकारापन के चलते दम तोड़ गई। पैरवी के अभाव में ज्यादातर विभागों को पैसा ही नहीं मिल सका और जिन्हें धन मिला वह उसका पूरा उपयोग नहीं कर सके। लिहाजा साल भर बाद भी काम न होने से जन सामान्य को कोई सुविधा नहीं मिल पाई।
जिले के जिम्मेदार अधिकारियों ने कागज मे तो करोडों की योजनाएं अना डाली पर जब उनके अमल का नंबर आया तो चादर तान कर सो गए। जिले के आधे से अधिक विभागों ने धन आवंटन के लिए स्मृति पत्र तक नहीं लिखे। पैरवी के आभाव में शासन ने मनमानी तरीके पैसा दिया जिससे शिक्षा व चिकित्सा जैसे कई अहम विभाग पूरी तरह मरहूम रह गए। पानी की भारी कमी से जूझ रहे जिले में जल निगम व लघु सिंचाई विभाग की कार्य योजनाओं को भी पैसा नहीं मिल पाया। इसके विपरीत जिन विभागों को पैसा मिला उनके अधिकारी नकारापन या देर से धन मिलने के कारण उसे व्यय नहीं कर पाए। नजीर के तौर पर पंचायती राज विभाग को संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के मद में 84,33 लाख रुपए का आवंटन हुआ पर साल के अंत तक लक्ष्य के सापेक्ष शौचालयों का निर्माण नहीं हो पाया और आवंटित धन का एक चौथाई व्यय ही नहीं हो सका। इसी तरह लोक निर्माण विभाग को सड़क व पुल निर्माण के लिए 503,18 लाख रुपए आवंटित हुए पर विभाग के जिम्मेदार अधिकारी पूरे पैसे का उपयोग ही नहीं कर सके और लगभग 30 लाख रुपया व्यय ही नहीं हो पाया। एक ओर पैसा खर्च नहीं हाक पाया दूसरी ओर मुख्यालय के बिलबई तिराहे से दिसरापुर व कुलपहाड़ से सलालपुर जैसी महत्वपूर्ण सड़कों पर काम न हो पाने का रोना रोया जा रहा है। विभाग के अधिशाषी अभियंता एएन सिंह कहते हैं धनाभाव में पांच सड़कों पर काम नहीं किया जा सका। पेंयजल के लिए जल निगम सिविल को 45,75 लाख मिला पर व्यय 33,73 लाख ही हो सका। इसके विपरीत शिक्षा व चिकित्सा जैसे महत्वपूर्ण विभागों को पैसा ही नहीं मिला। जिला विद्यालय निरीक्षक मंसाराम बताते है कि कुलपहाड़ के खस्ताहाल जीजीआईसी के भवन निर्माण का प्रस्ताव जिला योजना में स्वीकृत हुआ था पर पैसा न मिलने से काम नहीं हो पाया और कस्बे की सैकड़ों छात्राएं जान जोखिम में डाल दो दशक पूर्व कंडम घोषित किए जा चुके भवन मे बैठ कर पढ़ने को मजबूर हैं।