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मां तरकुलहा देवी मंदिर

मां तरकुलहा देवी अपने भक्तों की सदैव रक्षा करती है। लोगों का मानना है कि यहां आस्था एवं विश्वास के स

By JagranEdited By: Published: Fri, 31 Mar 2017 01:53 AM (IST)Updated: Fri, 31 Mar 2017 01:53 AM (IST)
मां तरकुलहा देवी  मंदिर
मां तरकुलहा देवी मंदिर

मां तरकुलहा देवी अपने भक्तों की सदैव रक्षा करती है। लोगों का मानना है कि यहां आस्था एवं विश्वास के साथ मांगी गई हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है। स्थानीय लोगों के अलावा दूर-दराज व नेपाल से बड़ी संख्या में भक्त मां का दर्शन करने आते हैं।

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देशभक्तों का स्थान

मां तरकुलहा देवी मंदिर स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी है। उस समय यह जंगल था। इसलिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के छिपने का सबसे मुफीद स्थान था। देश भक्त यहां मां की पूजा-अर्चना कर अपने अभियान पर निकलते थे।

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इतिहास

मंदिर की कहानी चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के विकास खंड सरदारनगर अंतर्गत स्थित डुमरी रियासत के बाबू शिव प्रसाद सिंह के पुत्र व 1857 के अमर शहीद बाबू बंधू सिंह से जुड़ी है। कहा जाता कि बाबू बंधू सिंह तरकुलहा के पास स्थित घने जंगलों में रहकर पूजा अर्चना करते थे तथा अंग्रेजों का सिर काटकर मां के चरणों में चढ़ाते थे। बाबू बंधू सिंह ने अपने गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से एक-एक कर अंग्रेजों का सिर कलम कर मां को चढ़ाना शुरू कर दिया। जिससे अंग्रेज अफसर घबरा गए और धोखे से बंधू सिंह को गिरफ्तार कर उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश दे दिया। जनश्रुति के अनुसार अंग्रेजों ने बंधू सिंह को जैसे ही फांसी के फंदे पर लटकाया, फांसी का फंदा टूट गया। यह क्रम लगातार सात बार चला। जिसे देखकर अंग्रेज आश्चर्य चकित रह गए। तब बंधू सिंह ने मां तरकुलहा से अनुरोध किया। हे मां मुझे अपने चरणों में ले लो। आठवीं बार बंधू सिंह ने स्वयं फांसी का फंदा अपने गले में डाला। इसके बाद उन्हें फांसी दी गई। कहा जाता है कि जैसे ही बंधू सिंह फांसी पर लटके इसके ठीक दूसरी तरफ तरकुलहा के पास स्थित तरकुल के पेड़ का ऊपरी हिस्सा टूट कर गिर गया। जिससे खून के फव्वारे निकलने लगे। बाद में भक्तों ने यहां मंदिर का निर्माण कराया।

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विशेषता

पहले चैत राम नवमी से एक माह का मेला लगता है। यह पुरानी परंपरा है। लेकिन अब वहां सौ से अधिक दुकानें स्थायी हैं और रोज मेले का दृश्य होता है। लोग पिकनिक मनाने भी वहां जाते हैं। मुंडन व जनेऊ व अन्य संस्कार भी स्थल पर होते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर लोग बकरे की बलि देते हैं।

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गोरखपुर से 22 किमी दूर

मां के दरबार में जाने के लिए हर समय साधन मौजूद है। गोरखपुर जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर देवरिया रोड पर फुटहवा इनार के पास मंदिर मार्ग का मुख्य गेट है। वहां से लगभग डेढ़ किमी पैदल, निजी वाहन या आटो से चलकर मंदिर पहुंचा जा सकता है।

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मंदिर प्रबंध तंत्र का पूरा ध्यान श्रद्धालुओं की सुविधा पर रहता है। मदद के लिए स्वयं सेवक लगे रहते हैं। प्रतिदिन साफ-सफाई की जाती है। एक माह तक यहां मेला लगता है। सुरक्षा की दृष्टि से यहां अस्थायी थाना भी स्थापित होता है।

-दिनेश त्रिपाठी, पुजारी

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मां की कृपा सभी पर बराबर बरसती रहती है। वह अपने भक्तों का सदैव ध्यान रखती हैं। उनकी कृपा से बड़े से बड़े संकट पल भर में टल जाते हैं। मेरा घर रजही हैं, हर नवरात्र में परिवार के साथ यहां आती हूं।

-वंदना सिंह, श्रद्धालु


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