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चाय के साथ चुनावी चर्चा ने माहौल किया गर्म

गोरखपुर : राजनीति दलों ने यूपी फतह करने के लिए जोर आजमाइश शुरू कर दी है। सियासी दाव-पेंच के साथ जाति

By Edited By: Published: Tue, 17 Jan 2017 01:31 AM (IST)Updated: Tue, 17 Jan 2017 01:31 AM (IST)
चाय के साथ चुनावी चर्चा ने माहौल किया गर्म
चाय के साथ चुनावी चर्चा ने माहौल किया गर्म

गोरखपुर : राजनीति दलों ने यूपी फतह करने के लिए जोर आजमाइश शुरू कर दी है। सियासी दाव-पेंच के साथ जातिगत एवं धार्मिक गणित का फार्मूला फिट करने की कोशिश जारी है। चुनाव के नतीजे 11 मार्च को आएंगे, लेकिन अभी से चौराहों, मोहल्लों और चाय की दुकानों पर चर्चा कर लोग अपनी-अपनी सरकारें बना रहे तो सामने वाला दलील से फौरन तख्ता पलट दे रहा है। कहीं नोटबंदी पर तकरार तो कहीं घरेलू झगड़े का शोर है। सोमवार की शाम जाफरा बाजार स्थित चाय की दुकान पर ऐसा ही नजारा दिखाई पड़ा।

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बात खेल से शुरू हुई, लेकिन जल्द ही बातों का रुख विधानसभा चुनाव की ओर घूम गया। नमकीन उठाते हुए अशरफुल रहमान बोले, अखिलेश की वापसी तय है, क्योंकि उन्होंने विकास के बहुत सारे काम किए हैं, जो अब तक किसी ने नहीं किया था। प्रदेश का युवा उनके साथ है। उनकी बात काटते हुए आमिर सामानी ने कहा कि सत्ता में कोई रहे उसे विकास तो करना ही पड़ेगा। सच तो यह है कि जो अपने पिता का न हो सका वो जनता का क्या होगा। बुजुर्गो को किनारे कर दुनिया में किसी ने तरक्की नहीं की है, इसलिए कह सकता हूं, अगर अखिलेश बाप से अलग हुए तो फिर कहीं के नहीं रहेंगे। मुशीर अहमद ने कहा कि बाप बेटा का झगड़ा कोई नई बात नहीं है। देश के इतिहास पर गौर करे तो इस तरह के बहुत से मामले सामने आएंगे। जरूरी नहीं कि बाप हमेशा सही हो। इसी दौरान विषय बदलते हुए मौहम्मद गौस ने कहा कि बाप बेटे के झगड़े का तो पता नहीं, लेकिन इस बार विकास और नोटबंदी चुनाव का मुद्दा जरूर बनेगा। उनकी बात खत्म होने से पहले ही निशात इबरार बोले, नोटबंदी सरकार का अच्छा कदम था, लेकिन अधूरी तैयारी और बैंक कर्मचारियों के नकारात्मक रवैये के कारण आम जनता को मुसीबत झेलनी पड़ी। सबसे ज्यादा दिक्कत तो उन्हें हुई जिनके घर कोई बीमार या शादी थी। शादी के लिए कर्ज भी नहीं मिल सका। इसी बीच कम में चाय खत्म हो गई तो दोबारा चाय का आर्डर दिया गया। चर्चा का विषय बदला तो इमरान सौदागर बोले, सिर्फ पब्लिक के सुधरने से कुछ नहीं होगा। राजनीतिक दलों को भी सुधार की जरूरत है। जनता के एक एक पैसे का हिसाब चाहिए, लेकिन राजनीतिक दल चंदे का हिसाब नहीं देना चाहते। यह तो दोहरे चरित्र वाली बात हो गई। अगर दलों ने चंदे का हिसाब नहीं दिया तो यह माना जाएगा कि वे चंदे के जरिये काले धन को सफेद करने में लगे हुए हैं। चाय के साथ चर्चा भी खत्म हो गई और लोग होटल से बाहर निकल आए।


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