गेहूं की बोआई में अब और देरी नहीं
गोरखपुर: गेहूं की बोआई में अब और देरी न करें। दिसंबर में बोआई के लिए देर से होने वाली प्रजातियों
गोरखपुर:
गेहूं की बोआई में अब और देरी न करें। दिसंबर में बोआई के लिए देर से होने वाली प्रजातियों का ही चयन करें। साथ ही तय मात्रा से सवा गुना बीज का प्रयोग करें। विकल्प के रूप में इस माह आलू की पिछैती किस्में भी बोई जा सकती हैं।
यूं तो गेहूं की बोआई का उचित समय नवंबर ही है, पर देर से पकने वाले धान, अगैती आलू, तोरिया, गन्ना और शीघ्र पकने वाली अरहर की फसल से खाली खेतों में कुछ किसान देर से गेंहू की बोआई करते हैं।
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इन प्रजातियों का करें चयन
-डीबीडब्लू-14/16/, एचयूडब्लू-234, एचडी-2643, पीबीडब्लू-373, नरेंद्र-1014/2036/1076 और के-9162/9555/9423/7903आदि। बोआई के 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। खेत में नमी बनाए रखने के लिए नियमित अंतराल पर हल्की सिंचाई करते रहने से उपज बेहतर होती है।
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समय से बोई गई फसल की सिंचाई कर यूरिया की टाप ड्रेसिंग करें
दिसंबर में समय से बोई गई रबी की अन्य फसलों की समय से सिंचाई व खर-पतवार के नियंत्रण का संभव उपाय करें। पहली सिंचाई हल्की होनी चाहिए।। सिंचाई के बाद जरूरत के अनुसार यूरिया की टाप ड्रेसिंग करें। इफ्को को क्षेत्र प्रबंधक आनंद कुमार के अनुसार नोटबंदी की वजह से जिन किसानों ने मानक से कम डीएपी, एनपीके और पोटाश का कम प्रयोग किया है वे पानी में घुलनशील उर्वरकों का छिड़काव कर सकते हैं। बाजार में ऐसे कई उत्पाद हैं जिनमें अलग-अलग अनुपात में एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश) हैं। ये सस्ता होने के साथ असरदार भी होते हैं।
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पिछैती आलू की
बोआई कर सकते हैं
जो किसान आलू की अगैती बोआई न कर पाएं हो वे आलू की देर से होने वाली प्रजातियों की बोआई कर सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र से सम्बद्ध सब्जी वैज्ञानिक डा.एसपी सिंह के अनुसार कुफरी बादशाह, सिंदूरी और देवा प्रजातियां यहां के कृषि जलवायु क्षेत्र के लिए बेहतर हैं। सब्जियों में इस समय लौकी ,टमाटर, करेला और प्याज बो सकते हैं। आलू और सरसों से जनवरी-फरवरी में खाली होने वाले खेत के लिए प्याज की नर्सरी भी डाल सकते हैं।
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आम के बाग में मिलीबग
कीट का रोकथाम करें
आम के बागों में इस समय मिलीबग कीट का प्रकोप संभव है। इसके रोकथाम के लिए पेड़ के थालों व तनों के चारो ओर फालीडान डस्ट (दो फीसद) का बुरकाव करें। पापुलर के के पौधों की रोपाई भी की जा सकती है। केले की फसल की जरूरत के अनुसार सिंचाई करें। नये बागों को पाले से बचाने का भी उपाय करें।
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