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बस्तों से झांक रहा नौनिहालों का भविष्य

गोरखपुर : बच्चों के बस्ते का बोझ हल्का होने की बजाए और बढ़ता ही जा रहा है। कान्वेंट स्कूलों में तो

By Edited By: Published: Sat, 27 Aug 2016 02:18 AM (IST)Updated: Sat, 27 Aug 2016 02:18 AM (IST)
बस्तों से झांक रहा नौनिहालों का भविष्य

गोरखपुर : बच्चों के बस्ते का बोझ हल्का होने की बजाए और बढ़ता ही जा रहा है। कान्वेंट स्कूलों में तो बोझ बढ़ाने की होड़ सी लग गई है। हम किसी से कम नहीं, की तर्ज पर स्कूल प्रबंधन आंख मूंदकर किताबों की संख्या बढ़ा रहे हैं। इसका सीधा असर बच्चे और उसके बस्ते पर पड़ रहा है। बच्चों के वजन से अधिक बस्ते का बोझ हो जा रहा है। खड़ा होने से पहले ही बच्चों के कदम लड़खड़ाने लगे हैं। बस्ते भी किताबों का बोझ बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। बैग कुछ माह बाद ही फट जा रहे हैं। इसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है। जेब ढीली हो रही है।

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शुक्रवार को सिविल लाइंस की सड़कों पर दिन में 1 से 1.30 बजे के बीच सैकड़ों बच्चे पीठ पर बस्ता उठाए विद्यालयों से निकल रहे थे। उन्हें देख लग रहा था जैसे उनका भविष्य उनके बस्ते में ही समाया हुआ है। भारी बस्ते को कभी इस कंधे पर तो कभी उस कंधे पर। जिनके अभिभावक पहुंचे थे वे दौड़कर बस्ता उठा रहे थे। लेकिन, सवाल यह है कि अभिभावक कब तक अपने बच्चे का बस्ता उठाते रहेंगे। जिनके अभिभावक नहीं थे, वह डगमगाते कदमों से रिक्शा और आटो रिक्शा की तरफ बढ़ रहे थे। पूछने पर कुछ चुप थे, कई उत्तर देने से घबराए नहीं। कुछ ने तो टाइम टेबल से नहीं पढ़ाए जाने की शिकायत भी की। बच्चों का बचपन सिर्फ सिविल लाइंस की सड़कों पर ही नहीं, बल्कि उन सभी कान्वेंट विद्यालयों तक जाने वाले मार्ग पर गुम हो रहा है, जहां किताबों को तौलकर शिक्षा दी जा रही है।

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कोट

- यूकेजी के छात्र मोहम्मद उस्मान के कंधे पर 10 किग्रा से अधिक का बोझ था। बस्ता संभाल नहीं पाया तो पिता ने उठा लिया। बस्ता भारी क्यों है के सवाल पर तपाक से शिकायत कर दिया। टीचर टाइमटेबल से नहीं पढ़ाते हैं। सभी किताब लेकर आते हैं।

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- कक्षा एक का छात्र सुशांत के कंधे पर बस्ता नहीं आ पा रहा था। उसे घर लेने आए पिता प्रशांत चतुर्वेदी ने बस्ता संभाल लिया। भारी बस्ता के सवाल पर बोल पड़े, बच्चे और अभिभावकों की सुनने वाला कौन है। पढ़ाना मजबूरी बन गई है। किताबें तो लानी ही पड़ेंगी।

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- कक्षा एक के छात्र सौम्य और श्लोक के बैग फट गए थे। दोनों बस्ते को संभाल नहीं पा रहे थे। कभी बैग में किताबों को देख रहे थे कि गिरा तो नहीं, तो कभी उसे कंधे पर सहेज रहे थे। डगमगाते कदमों से किसी तरह अपने आटो रिक्शा पर पहुंचे। तो चालक ने भी राहत की सांस ली।

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- होनहार शिवांग तो कक्षा से निकलते ही अपना बस्ता अभिभावक पूनम को पकड़ा दिया। पूछने पर कुछ बोला तो नहीं लेकिन हाथ की तरफ इशारा करने लगा। तभी अभिभावक उसके बाहों को सहलाने लगी। बताया, कमजोर है बस्ता उठाने में ही कंधे दुख गए हैं। इसीलिए तो कक्षा तक उसे लेने जाते हैं।


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