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संरक्षण की बाट जोह रहे शताब्दियों पुराने मंदिर व पोखरा

गोरखपुर : जाफरा बाजार स्थित शीश महल में शताब्दियों पूर्व बनवाए गए मंदिर व एक पोखरा संरक्षण की बाट ज

By Edited By: Published: Fri, 26 Aug 2016 02:07 AM (IST)Updated: Fri, 26 Aug 2016 02:07 AM (IST)
संरक्षण की बाट जोह रहे शताब्दियों पुराने मंदिर व पोखरा

गोरखपुर : जाफरा बाजार स्थित शीश महल में शताब्दियों पूर्व बनवाए गए मंदिर व एक पोखरा संरक्षण की बाट जोह रहे हैं। लगभग सभी मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। भवन ढह रहा है, अनेक जगहों पर दीवारें फट गई हैं। छत के नीचे लगाई गई लकड़ियां सड़ कर गिर गई हैं। वहीं थोड़ी दूर पर स्थित लगभग एक एकड़ का पोखरा पटने की स्थिति में आ गया है। पोखरे में अनेक पेड़-पौधे उग आए हैं और आसपास के लोग कूड़ा फेंक रहे हैं। विरासत को संरक्षित करने वाली संस्था इंटेक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज) की टीम ने बुधवार को शीश महल के मंदिरों व पोखरे का निरीक्षण किया। इंटेक टीम में पीके लाहिड़ी, महावीर प्रसाद कंदोई व डा. कृष्ण कुमार पांडेय थे।

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शीश महल का संबंध थारू राजा मानसिंह से है। राजा मानसिंह ने गोरखनाथ क्षेत्र स्थित मानसरोवर शिव मंदिर व पोखरे का निर्माण कराया था। उनका निवास शीशमहल था, कहा जाता है कि उन्होंने अपने महल से मानसरोवर पोखरे तक एक सुरंग बनवाई थी जिस रास्ते वह व उनका परिवार मानसरोवर में आकर पूजा-अर्चना करता था। शीश महल में स्थित अनेक मंदिरों व पोखरे का निर्माण भी उन्होंने ही कराया। गोरखपुर गजेटियर के अनुसार राजा मानसिंह का काल 900-950 ई. था। इसलिए शीशमहल के मंदिर, मंदिर में स्थापित मूर्तियों व पोखरे का निर्माण इसी काल के दौरान माना जाता है।

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मंदिरों का हाल बेहाल

शीशमहल में अनेकों मंदिर हैं। इसमें रामजानकी मंदिर प्रमुख है। इसमें स्थापित मूर्तियों को दसवीं शताब्दी का माना जाता है। वहीं बगल में भगवान जगन्नाथ का मंदिर है जहां से प्रतिवर्ष उनके भवन जर्जर हो गए हैं। जगह-जगह ईटें उखड़ रही हैं, दीवारें फट गई हैं। रामजानकी मंदिर का छत कुछ दिन पूर्व दुरुस्त कराया गया है, इसलिए वह ठीक है लेकिन उस भवन के अन्य हिस्से जर्जर अवस्था में हैं। वहीं बगल में भगवान लक्ष्मी-नारायण, उमा-माहेश्वर, गणेशजी, माता शक्ति आदि की मूर्तियां कमल पर स्थापित हैं।

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पटता जा रहा ऐतिहासिक पोखरा

शीशमहल स्थित लगभग एक एकड़ में फैला पोखरा पटने की स्थिति में आ गया है। इसमें जल की एक बूंद नहीं है। घास-फूस व पेड़-पौधे उग आए हैं। इसमें कूड़ा फेंका जाता है जिससे काफी हद तक यह पोखरा कूड़ा से भर गया है। इस पोखरे पर रानियों के स्नान के लिए स्नानागार बनाया है जो आज भी मौजूद है। पोखरे में नीचे उतरने के लिए लखौरी ईट से सीढि़यां बनाई गई हैं।

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शीशमहल का पोखरा व मंदिर मथुरा प्रसाद धर्मार्थ ट्रस्ट की संपत्ति हैं। ट्रस्ट इनकी देखरेख करता है और इनका जीर्णोद्धार भी ट्रस्ट ही कराएगा। इसकी तैयारी चल रही है। अभी कुछ दिन पहले रामजानकी मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया है। धीरे-धीरे सभी मंदिरों को दुरुस्त करा दिया जाएगा।

-प्रमोद कुमार, ट्रस्टी, मथुरा प्रसाद धर्मार्थ ट्रस्ट


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