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जाते-जाते निपटा दी 5 करोड़ की जांच

गोरखपुर : लोक निर्माण विभाग में खेल गजब का है। गाइड लाइन के विपरीत काम और भुगतान में गड़बड़ी केएक म

By Edited By: Published: Mon, 25 Jul 2016 01:33 AM (IST)Updated: Mon, 25 Jul 2016 01:33 AM (IST)
जाते-जाते निपटा दी 5 करोड़ की जांच

गोरखपुर :

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लोक निर्माण विभाग में खेल गजब का है। गाइड लाइन के विपरीत काम और भुगतान में गड़बड़ी केएक मामले को अधीक्षण अभियंता पांच साल तक दबाए रहे। सेवानिवृत्ति होने से एक दिन पहले पांच करोड़ के काम की फाइल का निपटारा कर दिया। विभाग में इसकी चर्चा खूब है।

अधीक्षण अभियंता जुनैद अहमद 30 जून को सेवानिवृत्त हुए हैं। अपने हस्ताक्षर से 29 जून 2016 की जांच रिपोर्ट मुख्य अभियंता गोरखपुर विकास प्राधिकरण गोरखपुर को भेज दी है, जबकि मामला मुख्य अभियंता पीडब्लूडी से जुड़ा है। अधीक्षण अभियंता द्वारा 12 जनवरी 2011 को निर्माण खंड मार्ग/ सेतु लोनिवि की निविदा आमंत्रित की गई थी। इसमें कुल 8 कार्य थे, जिसमें 7 कार्य नाबार्ड 16 व 1 कार्य नाबार्ड 15 का था। इसकी कुल लागत 5 करोड़ थी। इसे विधिक रूप से गलत बताते हुए ध्रुव नारायण सिंह ने 28 अप्रैल 2011 को मुख्य अभियंता से शिकायत की थी। उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा था कि इस निविदा का न आगणन बना है और न ही प्राविधिक स्वीकृति है, इसलिए निविदा आमंत्रित करना विधिक रूप से गलत है। उन्होंने यह तथ्य भी उजागर किया था कि बिल आफ क्वांटिटी व स्टीमेटेड कास्ट में काफी अंतर है। उन्होंने ठेकेदार व अधिशासी अभियंता में निगोशिएसन का आरोप भी लगाया। मुख्य अभियंता ने यह जांच अधीक्षण अभियंता को सौंपी थी। इसके बावजूद काम भी हुआ और भुगतान भी। अधीक्षण अभियंता ने आगणन करने वाले अधिशासी अभियंता से स्पष्टीकरण मांगा। अधिशासी अभियंता ने जवाब में कहा कि निविदा के कार्यो के आगणन में अधिष्ठान व्यय मूल्य ह्रास निधि, सेस, कांटिजेंसी आदि व्यय सम्मिलित था तथा बिटुमिन विभाग द्वारा उपलब्ध कराया जाना था, इसलिए निविदा के बिल आफ क्वांटिटी की लागत में इन सब को घटा दिया गया, इस कारण दोनों की लागत में अंतर है। उन्होंने शिकायत कर्ता की आशंका को निराधार बताया था। अंतिम रिपोर्ट लगाते हुए अधीक्षण अभियंता ने लिखा है कि तत्कालीन अधिशासी अभियंता द्वारा यद्यपि एक साथ सभी निविदा दाताओं से निगोशिएसन कर विभागीय परंपरा से हटकर निविदा प्रकरण का निस्तारण किया गया है। परंतु ऐसा करने से शासन को वास्तविक रूप से कोई क्षति नहीं हुई है, इसलिए प्रकरण को समाप्त करने पर विचार करने की संस्तुति की जाती है।

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प्रकरण 2011 का है। काफी पुराना हो गया है। नियम यह है कि जो बहुत पुराने प्रकरण हों और उनसे शासन को कोई क्षति न हो रही हो तो उसे पुन: कुरेदा नहीं जाता है। फिर भी मैं इसे देखवा लेता हूं।

-एसपी सक्सेना, मुख्य अभियंता पीडब्ल्यूडी

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