फसलचक्र बदलें, बचेगा पानी
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : जल ही जीवन है। जल के साथ हमारे वजूद पर भी संकट आना तय है। अगर इसे बचाना
जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
जल ही जीवन है। जल के साथ हमारे वजूद पर भी संकट आना तय है। अगर इसे बचाना है, तो कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार फसलचक्र में भी बदलाव करना होगा। समय रहते ये बदलाव खुद नहीं किए गए, तो प्रकृति ऐसा करने को मजबूर कर देगी।
विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र नई दिल्ली की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति हेक्टेयर गन्ने की फसल तैयार करने में जितना पानी लगता है, उतने में 30 गुना रकबे में बाजरा पैदा किया जा सकता है। पानी की समान मात्रा में ही क्रमश: 22, 25 हेक्टेयर ज्वार, 12-13 हेक्टेयर मूंगफली, 10-12 हेक्टेयर आलू, गेहूं एवं मक्का और 5 हेक्टेयर धान एवं प्याज की खेती की जा सकती है।
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मिश्रित खेती से पानी भी बचेगा
और जोखिम भी कम
खेती की प्रचलित एकल विधा में पानी तो अधिक लगता ही है। इसमें जोखिम भी है। किसी वजह से फसल प्रभावित हुई, तो मेहनत-मजदूरी सब बेकार। गोरखपुर इनवायरमेंटल ऐक्शन गु्रप के जितेंद्र पांडेय के अनुसार मिश्रित खेती के जरिए अधिक पोषक तत्वों से भरपूर फसलों को उगाकर इस जोखिम के साथ खाद्य एवं पोषण सुरक्षा को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।
इस बात के प्रमाण हैं कि एकल फसल के रूप में उगाए जाने पर ज्वार और अरहर की फसल क्रमश: 8 एवं 5 साल में एक बार बर्बाद होती है। ज्वार और अरहर की मिश्रित फसल के साथ यह 36 साल में एक बार संभव है।
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