लहसुन की तेजी में राजस्थान की चांदी
जागरण संवाददाता,गोरखपुर: यूं तो प्याज एवं लहसुन एक दूसरे के पूरक हैं, पर चर्चा में प्याज ही रहती ह
जागरण संवाददाता,गोरखपुर:
यूं तो प्याज एवं लहसुन एक दूसरे के पूरक हैं, पर चर्चा में प्याज ही रहती है। इस बार भी प्याज की सुर्खियों में लहसुन दब गया है। बाजार में लहसुन में भी प्याज जैसी ही तेजी है। क्रमश: बढ़ते-बढ़ते थोक भाव साइज एवं गुणवत्ता के अनुसार 5000-8000 रुपये क्विंटल तक पहुंच गए हैं। फुटकर में प्रति किग्रा भाव 120-125 के करीब हैं।
लहसुन का प्रमुख उत्पादक राज्य होने के बाद भी इस बार की तेजी में चांदी राजस्थान के व्यापारियों की कट रही है। स्थिति ये है कि स्थानीय लहसुन सीजन से अब तक मंडी में अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है। दो साल पहले तक जनवरी से लेकर होली तक यहां का लहसुन मध्यप्रदेश (इंदौर मंडी)की नई फसल को थोड़ी सी जगह देता था। स्थानीय लहसुन की आवक के बाद फिर सीजन भर थोक एवं फुटकर मंडी में इसी का बोलबाला रहता था, पर दो साल से हालात बदले हैं। इस साल तो ये पूरी तरह बदल गए हैं। कोटा राजस्थान के लहसुन की बाजार में धूम हैं। सीजन के सिर्फ चार माह बाकी हैं, पर बाजार में बने रहने के लिए देशी लहसुन संघर्ष कर रहा है। बाजार में कोटा एवं देशी की उपलब्धता का अनुपात 75:25 का है। कोटा के लहसुन की सफेदी एवं चमक के आगे देशी लहसुन की पूछ घटी है।
कारोबारी राजेश गुप्ता के अनुसार इस साल लहसुन टाइट है। मई में थोक भाव 40-5 रुपये थे। धीरे-धीरे ही सही तबसे इसमें लगातार तेजी बनी हुई है। अमूमन मांग घटने से सावन में भाव टूटते हैं, पर इस साल ऐसा नहीं हुआ। सावन के बाद मांग बढ़ने और आगे बुआई की मांग निकलने के नाते व्यापारियों को और तेजी की उम्मीद है। पर इस सबका लाभ राजस्थान के किसानों और व्यापारियों को मिल रहा है।
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मौसम से मार खा
गया देशी लहसुन
उत्पादक क्षेत्रों एटा, इटावा, मैनपुरी आदि में पिछले वर्ष फरवरी-मार्च की बेमौसम बारिश और ओले की मार अन्य फसलों की तरह लहसुन पर भी पड़ी थी। उपज एवं गुणवत्ता दोनों मारी गई। रंग मटमैला पड़ गया और साइज छोटी। बाजार में आने वाले माल की कोटा की चमक के आगे पूछने वाले कम हैं।
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