शवों में कीड़े पड़ने से नाराज परिजनों ने लगाया जाम
जागरण संवाददाता, गोरखपुर पोस्टमार्टम हाउस में रखे सीआरपीएफ जवान जवाहरलाल कन्नौजिया की पत्नी व
जागरण संवाददाता, गोरखपुर
पोस्टमार्टम हाउस में रखे सीआरपीएफ जवान जवाहरलाल कन्नौजिया की पत्नी व बच्चों के शवों में कीड़े पड़ने से नाराज परिजनों ने शनिवार को मेडिकल कालेज गेट के सामने दिन में डेढ़ बजे से जाम लगाकर एक घंटे तक प्रदर्शन किया। उनका आरोप था कि शवों को सुरक्षित ढंग से न रखने की वजह कीड़े पड़े हैं। जाम खत्म करने के लिए उनको मनाने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी। जाम की वजह से गोरखपुर-महराजगंज मार्ग पर आवागमन पूरी तरह से ठप हो गया था।
सीआरपीएफ में हवलदार झरना टोला, शाहपुर के थाड़ो लाइन निवासी जवाहरलाल कन्नौजिया की पत्नी राजी देवी (35), बेटियों पूनम (16) व रूबी (12) तथा बेटे अनूप (15) की घर के अंदर हत्या कर दी गई थी। वारदात को अंजाम देने के बाद हत्यारे घर के मुख्य दरवाजे और चहारदीवारी में लगे गेट पर ताला लगाकर फरार हो गए थे। शुक्रवार को एक रिश्तेदार के उनके घर पहुंचने पर घटना की जानकारी हुई। पुलिस की छानबीन में पता चला कि परिवार के लोगों को अंतिम बार 29 जुलाई की शाम को देखा गया था। 30 जुलाई की सुबह उनके घर में ताला लगा मिला था।
पुलिस, शुक्रवार को ही शवों का पोस्टमार्टम कराना चाह रही थी लेकिन घटना की जानकारी होने पर छत्तीसगढ़ से घर के चले सीआरपीएफ जवान ने अधिकारियों से उसके गोरखपुर पहुंचने के बाद ही पोस्टमार्टम कराने की सिफारिश की थी। शुक्रवार की रात वह गोरखपुर पहुंचे। शनिवार को दोपहर में परिवार के लोग अंत्यपरीक्षण कराने पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे। इस दौरान शवों में पड़े कीड़े देखकर वे भड़क गए। परिजनों का कहना था कि शवों को सुरक्षित रखने के लिए शुक्रवार को ही उन्होंने अपनी तरफ से बर्फ का इंतजाम करने को कहा था। तब अधिकारियों ने यह कहते हुए इससे इन्कार कर दिया कि जिला प्रशासन की तरफ से इसकी व्यवस्था कर दी जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसी बात से परिजन नाराज थे।
जाम की सूचना मिलने पर पहुंचे पुलिस अधीक्षक नगर हेमंत कुटियाल, परिजनों को किसी तरह से समझ सके कि निश्चित समय सीमा के बाद शव में कीड़े पड़ जाना स्वाभाविक है। इसे रोका नहीं जा सकता। काफी समझाने के बाद परिजनों ने ढाई बजे के आसपास जाम खत्म किया। इसके बाद ही शवों का पोस्टमार्टम हो सका।
---
पोस्टमार्टम हाउस का फ्रीजर खराब
गोरखपुर : शवों को सुरक्षित रखने के लिए पोस्टमार्टम हाउस में छह फ्रीजर लगे हैं। बताते है कि इसमें से दो फ्रीजर काफी दिनों से खराब है। चार अन्य फ्रीजर चालू हालत में तो हैं, लेकिन उनका कूलिंग सिस्टम काम नहीं करता। यदि छहों फ्रीजर ठीक भी कर दिए जाय तो भी पोस्टमार्टम के लिए रोज आने वाले शवों की तादात के लिहाज से यह नाकाफी ही है। मसलन शनिवार को सीआरपीएफ जवान की पत्नी व बच्चों सहित कुल बारह शव पोस्टमार्टम हाउस में थे। ऐसे में यह कैसे तय हो सकता है कि किस शव को फ्रीजर में रखा और किसे बाहर। सबसे अधिक मुश्किल तब होती है जब अज्ञात शव पोस्टमार्टम के लिए लाया जाता है। उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार ऐसे शवों को पहचान के लिए कम से बहत्तर घंटे सुरक्षित रखना आवश्यक है। फ्रीजर के काम न करने के नाते पोस्टमार्टम हाउस में रखे ऐसे शव मिलने के बाद से 72 घंटे तक सड़ते रहते हैं।
---
फोरेंसिक विशेषज्ञों की मौजूदगी हुआ पोस्टमार्टम
गोरखपुर : घटना की छानबीन करने के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ से आई फोरेंसिक विशेषज्ञों की टीम की मौजूदगी में डाक्टरों के पैनल ने शनिवार को शवों का पोस्टमार्टम किया। फोरेंसिक विशेषज्ञ जी खान के नेतृत्व में छानबीन कर रही टीम के कहने पर डाक्टरों ने राजी देवी और उनकी बड़ी बेटी पूनम का वेजाइन स्वैप के अलावा चारों मृतकों का बिसरा (अमाशय का हिस्सा), नाखून, सीने का अंदरूनी हिस्सा और लार, आगे की छानबीन के लिए सुरक्षित रख लिया है।
---
क्राइम सीन क्रिएट कर फोरेंसिक टीम ने की छानबीन : लखनऊ से आई फोरेंसिक विशेषज्ञों की टीम शनिवार को सीआरपीएफ जवान के घर पहुंचकर गहन छानबीन की। इस दौरान उन्होंने घटना की रात किचन में बनाकर रखे खाने के का नमूना लिया। इसके अलावा टीम के लोग ने घर के अंदर रखा एक दर्जन से अधिक सामान अपने कब्जे में लिया है। घटनास्थल की पड़ताल के दौरान उन्होंने काल्पनिक क्राइम सीन क्रिएट कर यह पता लगाने की कोशिश की कि हत्या कैसे हुई होगी? हत्यारे कहां से आए होंगे? और हत्या की वजह क्या हो सकती है?
----
एक साथ जली चारों चिताएं
गोरखपुर : चारों शवों का दाह संस्कार राजघाट में राप्ती तट पर किया गया। सीआरपीएफ जवान ने पत्नी व बच्चों को मुखाग्नि दी। एक साथ जल रहीं चारों चिताओं को देखकर वहां मौजूद कोई भी व्यक्ति खुद को आंसू निकलने से नहीं रोक पाया। सीआरपीएफ जवान का तो हाल काफी बुरा था। छत्तीसगढ़ से ही उनके साथ आए चार साथी जवान उनको किसी तरह से संभाल रहे थे। परिवार के लोग भी उन्हें ढांढस बंधाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर क्या कहकर उन्हें संतोष दिलाएं।