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1934 के बाद का सबसे तीव्र भूकंप

गोरखपुर: हिमालय की तलहटी में आए भूकंप की तीव्र हलचल ने नेपाल में तो तबाही मचाई ही, उत्तर भारत में भी

By Edited By: Published: Sun, 26 Apr 2015 01:45 AM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2015 01:45 AM (IST)
1934 के बाद का सबसे तीव्र भूकंप

गोरखपुर: हिमालय की तलहटी में आए भूकंप की तीव्र हलचल ने नेपाल में तो तबाही मचाई ही, उत्तर भारत में भी अफरा-तफरा मचा दी। गोरखपुर- बस्ती मंडल में भी इससे जनहानि हुई है। भूकंप के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील इस क्षेत्र में 1934 के बाद आया यह सबसे तेज झटका है। 1934 में तीव्रता 8.3 थी। शनिवार को तीव्रता 7.9 मापी गई।

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इससे पहले भी देश के पूर्वी हिस्से की धरती के भीतर कई बार हलचल पैदा हुई है। इन हलचलों का क्षेत्र उसी सिस्मिक हाईवे (सिस्मिक जोन चार) और उसके आसपास का क्षेत्र रहा है, जिसकी परिधि में गोरखपुर-बस्ती मंडल की आबादी बसी है। इससे पहले 2012 में देश में भूकंप के चार झटके महसूस किए गए थे। इनमें से एक को छोड़कर बाकी के केंद्र सुदूर इंडोनेशिया से अफगानिस्तान तक की लगभग तीन हजार किमी की लंबाई वाले इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेट से जुड़े क्षेत्र थे।

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हाल में कब आए प्रमुख झटके

-27 अगस्त 2012 को भोर में 5.35 बजे। भूकंप का केंद्र पोर्ट ब्लेयर से 147 किमी दक्षिण में था, तीव्रता 5.00 थी

- 24 अगस्त 2012 को रात 9.25 बजे। इसका केंद्र बहराइच के भिनगा में था। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 4.4 थी।

-23 अगस्त 2012 को दिन में दस बजे, भूकंप का केंद्र नेपाल का पुठान था, तीव्रता 5.0 थी।

-19 अगस्त 2012 को रात 2.54 बजे आए भूकंप का केंद्र गुवाहाटी था, तीव्रता 4.8 थी।

-18 सितंबर 2011 को आए भूकंप से यहां भी धरती डोली थी। इसका केंद्र बहुत दूर सिक्किम में जरूर था लेकिन इंडियन प्लेट पर होने के कारण यहां से संबंध था। इसकी तीव्रता 6.9 थी।

-21 अगस्त 1998 को इस प्लेट से जुड़े बिहार-नेपाल बार्डर के केंद्र पर आए भूकंप का झटका यहां भी लगा था। उसकी तीव्रता 6.4 थी।

- 15 जनवरी 1934 को बिहार-नेपाल बार्डर के केंद्र पर आए भूकंप ने गोरखपुर में भी तबाही मचाई थी। रिक्टर स्केल पर तीव्रता 8.3 मापी गई थी।

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क्यों होती है धरती के नीचे हलचल

भूगर्भ विज्ञान के मुताबिक लगभग चार करोड़ वर्ष पूर्व पूरी धरती एक थी। उसे पैंजिया कहा जाता है। भूकंप अथवा अन्य हलचलों के कारण बाद में पांच महाद्वीपों उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप, एशिया, आस्ट्रेलिया के रूप में अलग-अलग हो गई। धरती छह प्रमुख प्लेटों उत्तर अमेरिकन, दक्षिण अमेरिकन, अफ्रीकन, यूरेशियन, इंडो-आस्ट्रेलियन और पैसेफिक प्लेट पर टिकी है। इन मुख्य प्लेटों के बीस उप प्लेट हैं। ये प्लेटें जब खिसकती हैं तो धरती के भीतर हलचल होती है।

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कुंओं का जल व पक्षियों को देखकर लगाते थे पहले अनुमान

भूकंप के बारे में सटीक पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है। विकसित देश भी भविष्यवाणी करने में अभी सक्षम नहीं हैं। अलबत्ता धरती के भीतर होने वाली हलचलों और उसके लक्षणों को पढ़ने के लिए अब टोमोग्राफी (अल्ट्रासाउंट विधि) का सहारा लिया जा रहा है। सौ साल पहले तक लोग अचानक कुंओं का जलस्तर बढ़ने और पक्षियों के व्यवहार में परिवर्तन को सामान्य संकेत मानते थे। 2011 में इंस्टीच्यूट आफ सिस्मोलाजी हैदराबाद से आए एक दल ने गोरखपुर में कुंओं का अध्ययन करने का प्रयास किया था।

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सुरक्षित होने के क्या हैं उपाय

-भूकंप आने के बाद मेज, पलंग, मजबूत फर्नीचर के नीचे चले जाएं

-संतुलन के लिए फर्नीचर को कसकर पकड़ लें। उसके हिलने पर खुद हिलने को तैयार रहें

-दरवाजे के रास्ते में न खड़े रहें क्योंकि दरवाजा गिर सकता है

-लिफ्ट का कतई इस्तेमाल न करें, कोशिश करें खुली जगह में पहुंचने की

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सरकारी भवनों का भूकंपरोधी निर्माण, कहां तक भरोसा

सरकारी तौर पर आपदा प्रबंधन के अंतर्गत जागरुकता व बचाव के कार्यक्रम पिछले लंबे समय से आयोजित होते आ रहे हैं, बावजूद इसके अभी संपूर्ण उपाय नहीं दिख रहे हैं। शहरी हिस्सों में जलाशयों पर मनमाना ढंग से बने भवन और ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले स्कूल इसके उदाहरण हैं। कागजों में तो सभी भूकंपरोधी हैं लेकिन इनके निर्माण में भूकंप संधि तकनीकी का प्रयोग हुआ है या नहीं, इस हकीकत के परीक्षण का कोई सरकारी पैमाना ही नहीं है। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक यह क्षेत्र बहु आपदा ग्रस्त है। तात्पर्य यह कि बाढ़, अतिवृष्टि के साथ यदि भूकंप आए तो कल्पना मात्र ही भय पैदा कर देती है।


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