प्रतिरोध है समकालीन साहित्य का मुख्य स्वर : प्रो.मिश्र
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : हमारे समय के साहित्य का सबसे खास स्वर बाजार, व्यवस्था, भूमंडलीकरण, साम
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : हमारे समय के साहित्य का सबसे खास स्वर बाजार, व्यवस्था, भूमंडलीकरण, साम्प्रदायिकता और पूंजी का बहुविध प्रहार सहने वाले मनुष्य की संवेदना बचानी है। साहित्य की भाषा कोई भी हो लेकिन उसके मूल में लोक की पीड़ा है। समकालीन साहित्य का मुख्य स्वर प्रतिरोध का ही है। प्रतिरोध सत्ता का, व्यवस्था का और सामाजिक, धार्मिक व नैतिक रूढि़यों का।
यह विचार महात्मा गाधी अंतर्राष्ट्रीय ¨हदी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रतिकुलपति प्रो.चित्तरंजन मिश्र ने व्यक्त किए। वे दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित उत्तरपूर्व एवं उत्तर लेखक सम्मिलन के दूसरे दिन रविवार को 'समकालीन भारतीय साहित्य' विषयक गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
प्रो. मिश्र ने कहा कि समकालीन साहित्य की कोशिश संवेदना को बचाने और लोकतांत्रिक व्यवस्था रचने की है। समकालीन साहित्य स्वरों की बहुलता का साहित्य है। हमारे साहित्य में दलित, आदिवासी, महिला, अल्पसंख्यकों का स्वर है। आज का साहित्य हाशिए पर खड़े आम आदमी के अधिकारों को ताकत देता है। वहीं मणिपुरी साहित्यकार एल. जयचंद सिंह ने मणिपुरी साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि नई पीढ़ी ने मणिपुरी साहित्य को समकालीन संदर्भो में नया आकार दिया है। कविता, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, लेख, निबंध, अनुवाद व अन्य साहित्यिक विधाओं में मणिपुरी साहित्य आगे बढ़ रहा है। इन सभी विधाओं में मणिपुर की प्राकृतिक छटा की खुशबू है, तो भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से उत्पन्न तमाम समस्याओं का दर्द भी। मणिपुरी साहित्य में मानवीयता की संवेदना को स्वर देने का जज्बा भी है, तो आध्यात्मिक ग्रंथों का अनुवाद करने की क्षमता भी। अब तक 19 मणिपुरी लेखकों को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलना मणिपुरी साहित्य की ताकत दर्शाता है। इसी क्रम में असमिया साहित्यकार ज्योति मोहंती ने कहा कि आतंकवाद और मानवाधिकारों के बीच अपनी अस्मिता तलाशते असमिया नागरिकों की पीड़ा और मानवता की पीड़ा असमिया साहित्य के मूल में है। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार मो.जमान आजुर्दा ने की।
कहानियों-कविताओं में हुआ संवेदनाओं का चित्रण : संगोष्ठी में आयोजित कहानियों-कविताओं पाठ में पढ़ी गई कहानियों में मानवीय रिश्तों, संवेदनाओं की जीवंत झलक देखने को मिली। कहानी पाठ की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार ललित मंगोत्रा ने की। मणिपुर से आई सनतोंबी निंगोमबम ने अपनी कहानियों के माध्यम से महिला अधिकारों पर हो रहे विमर्श को धार दिया तो मदन मोहन ने हिन्दी में 'अम्मा का संदूक' नामक कहानी का वाचन किया। वहीं कविता पाठ की शुरुआत मणिपुरी कवि एसी नेत्रजित ने की। उसके बाद नेपाली भाषा में जीवन नामदुंग और पंजाब से आए कवि जसविंदर ने गजल 'पता नहीं कितनी दूर जाना है' ने सभा में मौजूद लोगों को बांधे रखा। हिन्द कवि महेश अश्क ने अपनी गजल सुनाकर लोगों की दाद बटोरी उन्होंने अपनी रचना 'खिलौने देखकर मुंह फेर लेते हैं, न जाने क्या यह बच्चे चाहते हैं' और बहुत दिन बाद तीखे बोल कर देखा है, बहुत दिन बाद अपनी याद आई'.. सुनाई।