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होलिका जलाएं, हरियाली नहीं

जागरण संवादददाता, गोरखपुर : प्रेम, भाईचारा व कटुता को मिटा देने वाला पर्व होली शुक्रवार को हर्षोल

By Edited By: Published: Tue, 03 Mar 2015 01:19 AM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2015 05:13 AM (IST)
होलिका जलाएं, हरियाली नहीं

जागरण संवादददाता, गोरखपुर : प्रेम, भाईचारा व कटुता को मिटा देने वाला पर्व होली शुक्रवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। गुरुवार को होलिका दहन है। होलिका बुराई की प्रतीक है जिसे जलाकर हम खुशियों का त्योहार मनाते हैं। होलिका के साथ ही हम कटुता, बैर, कलह, भेदभाव व मनमुटाव भी जलाते हैं। होलिका जलाना हमारी परंपरा है तो हरे वृक्ष हमारी विरासत हैं, जीवन हैं, खुशियां हैं। हर कीमत पर इन्हें बचाने की कोशिश होनी चाहिए। यह ध्यान रखना पड़ेगा कि होलिका जले लेकिन हरियाली नहीं।

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मुख्य वन संरक्षक आरआर जमुआर की मानें तो होलिका में सूखी लकड़ियां व गोबर के उपले जलाने की पुरानी परंपरा है। ये दोनों चीजें हरे वृक्षों से कम कार्बन डाईआक्साइड उत्पन्न करती हैं। यानी हरे वृक्षों को जलाना ज्यादा खतरनाक है, देर तक जलते हैं और देर तक धुंआ यानी कार्बन डाइ आक्साइड छोड़ते हैं। दोहरा नुकसान हुआ। एक तो हमें आक्सीजन प्रदान करने का एक संसाधन नष्ट हो गया और दूसरे उसके जलने से वातावरण में अधिक कार्बन डाइ आक्साइड व्याप्त हो जाएगा।

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होलिका की कहानी

पं. नरेंद्र उपाध्यक्ष, पं. शरदचंद्र मिश्र, अरविंद सिंह व त्रिपाठी नर्वदेश्वर पति शर्मा के अनुसार हिरण्यकश्यपु अपने पुत्र प्रहलाद को नारायण की भक्ति से विमुख करना चाहता था, उसके विमुख न होने पर उसने प्रहलाद को मार डालने का निर्णय लिया। अनेक कोशिशें निष्प्रभावी होने पर उसने आग से न जलने का वरदान पाई हुई अपनी बहन होलिका का उपयोग किया। उसने होलिका को इस बात के लिए तैयार किया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ जाए और आग लगा दी जाए। ऐसा ही किया गया लेकिन भगवत कृपा से प्रहलाद नारायण-नारायण कहते आग से बाहर आ गए और होलिका जलकर मर गई। तभी से यह पर्व हम बुराई के अंत के रूप में मनाते हैं। इसलिए होलिका के साथ बैर, मनमुटाव, विवाद, कलह आदि बुराइयों को ही जलाएं।

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हरे पेड़ कतई न काटें

मुख्य वन संरक्षक आरआर जमुआर ने कहा कि हरे पेड़ कतई न काटें। हरियाली को बचाना वन विभाग की जिम्मेदारी है लेकिन आम जनता की भी अपने पर्यावरण के प्रति सचेत रहने की जिम्मेदारी है, यह हम सभी का कर्तव्य बोध है कि हरियाली बचाई जाए, क्योंकि जीवन के लिए यह निहायत जरूरी है। होलिका जलाने के नाम पर हरे पेड़ों को काटना न तो धार्मिक दृष्टि से ही है और न ही नैतिक व सामाजिक दृष्टि से, इसलिए इससे बचें। हरा पेड़ काटना कानून जुर्म भी है, यह भी ध्यान रखें।

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होली खुशियों का त्योहार है। इसमें यदि हम हरे वृक्षों को काटकर जलाएंगे तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी।

प्रो. सीपीएम त्रिपाठी, पर्यावरणविद

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कोई त्योहार प्रकृति को नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं देता है, उसे नुकसान पहुंचेगा तो हम भी बच नहीं पाएंगे।

प्रो. ओपी पांडेय, आचार्य गोविवि


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