फिराक को सरकारी तंत्र ने किया उपेक्षित
गोरखपुर : अपनी शेरो-शायरी से विश्व के श्रेष्ठ साहित्यकारों में शुमार ज्ञान पीठ पुरस्कार से सम्मा
गोरखपुर :
अपनी शेरो-शायरी से विश्व के श्रेष्ठ साहित्यकारों में शुमार ज्ञान पीठ पुरस्कार से सम्मानित रघुपति सहायक फिराक गोरखपुरी का पैतृक गांव सरकारी तंत्र के चलते उपेक्षा के शिकार हैं। पैतृक गांव बनवारपार में उनकी जन्म व पुण्यतिथि मनाई तो जाती है किंतु यह भी मात्र रस्म अदायगी तक ही सिमट कर रही गई है। शासन व प्रशासन ने उनके गांव की स्थिति सुधारने का आश्वासन तो कई बार दिया, लेकिन धरातल पर कुद भी नहीं हुआ। तीन मार्च, 1982 को उन्होंने इस दुनिया से विदा ली थी।
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नहीं बना कम्युनिटी सेंटर
शासन ने फिराक साहब के नाम पर गांव में एक कम्युनिटी सेंटर का निर्माण 61 लाख रुपये की लागत से कराने की घोषणा की थी, किंतु प्रशासन की बेरुखी के चलते मामला अब भी अधर में है। योजना की फाइल धूल फांक रही है।
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पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का आश्वासन हवा-हवाई: आने वाली नस्लों को फिराक के व्यक्तित्व से अवगत कराने के लिए बनवारपार गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का स्थानीय जन प्रतिनिधियों का आश्वासन अबतक हवा-हवाई ही साबित हुआ है।
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फिराक के गांव की उपेक्षा : गांव निवासी पुंडरीकाक्ष का कहना है कि फिराक साहब हमारे गांव के थे, इसका हमे गर्व है। अफसोस इस बात का है कि अब तक हर सरकार ने फिराक के गांव की उपेक्षा ही की है।
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विश्व फलक पर पहचान : उमाशंकर मिश्र व नेबूलाल कहते हैं कि हमारी पहचान तो फिराक साहब के नाते विश्व में है। हम लोग जब कहीं बाहर होते हैं और लोगों को यह मालूम होता है कि हम फिराक के गांव के हैं तो लोग हमे आत्मीय सम्मान देते हैं। किंतु सरकारी उदासीनता के चलते उनका ही गांव उपेक्षा का दंश झेल रहा है।
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फिराक सेवा संस्थान
: बनवारपार में फिराक की स्मृति सहेजने के नाम पर प्रदेश शासन की पहल पर पर्यटन विभाग ने उनकी प्रतिमा स्थापित कराई है किंतु इसपर फूल चढ़ाने को सरकार के प्रतिनिधियों को फुर्सत नहीं है। ग्रामीणों द्वारा बनाई गई संस्था फिराक सेवा संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष डा.छोटेलाल यादव के प्रयास से एक पुस्तकालय चलता है जिसमें तकरीबन 100 पुस्तकें हैं।
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ये थे समकालीन :
दो अगस्त 1896 को गोरखपुर जिले के बनवारपार गांव में जन्मे फिराक, साहिर लुधियानवी, इकबाल, फैज अहमद फैज, कैफी आजमी जैसे शायरों के हम उम्र थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे।
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साहित्य सृजन : 'गुले-नगमा' पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला, इसके अलावा 'रुह-ए-कायनात' 'सोज-ए-साज' 'चेरांगा', 'धरती की करवट', 'पिछली रात', 'गुल-ए-बाग', 'हजार दास्तान' व 'गुलिस्ता' आदि ढेर सारे साहित्य की रचना फिराक साहब ने की। तीन मार्च 1982 को उन्होंने शरीर छोड़ने से पहले ठीक ही कहा था 'ऐ मौत आके खामोश कर गई तू, सदियो दिलों के अंदर हम गूंजते रहेंगे'।
फिराक की शायरी: कवि राम अधार यादव व्याकुल का मानना है कि फिराक साहब ने ऊर्दू को एक नई पहचान दी है। वे ऊर्दू के एक मात्र शायर हैं, जिनको साहित्य के ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया। व्याकुल का कहना है कि 'शेरो गजल नगमो को वक्त गुनगुनाएगा, फिराक सा शायर नहीं धरती पर आएगा'। डा.डीके मल्ल का कहना है कि फिराक साहब के साहित्य में मीर और मोमिन की छाप दिखती है।
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सुंदरता के शायर थे फिराक: तालिब गोरखपुरी फिराक के साहित्य पर शोध करके डाक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाले व दास्ताने फिराक के लेखक डा.तालिब गोरखपुरी का मानना है कि फिराक सुंदरता के शायर थे। फिराक के गजल, नज्म और रुबाई तीनों विधाओं में हैं। वह सौंदर्य के शायर हैं।