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कर्म में ही निहित है सुख-दुख का मूल

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओर से आयोज

By Edited By: Published: Tue, 03 Mar 2015 01:15 AM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2015 01:15 AM (IST)
कर्म में ही निहित है सुख-दुख का मूल

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की ओर से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी की सोमवार को शुरुआत हुई। पहले दिन देश भर से आए संस्कृत विद्वानों ने 'संस्कृत वांगमय में कर्म विमर्श' विषय पर गंभीर चर्चा की।

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बीएचयू से आए प्रो. विंध्येश्वरी प्रसाद ने कहा कि कर्म उपासना और ज्ञान ही हमारी सांस्कृतिक संपत्ति है। कर्म के सतत प्रवाह की वजह से ही हम जन्म-मृत्यु के बंधन में है। पशुओं को मनुष्य योनि से अलग करते हुए उन्होंने कहा कि पशु यदि ¨हसा करता है तो उसे पाप नहीं लगता, क्योंकि उसमें कर्तापन नहीं होता है। चूंकि मनुष्य खुद को कर्ता और फल भोक्ता मानकर कर्म करता है, यही कारण है कि उसे दुख होता है। जब सत्य ज्ञान की जानकारी होती है तो कर्मफल से ही वैराग्य हो जाता है। प्रो. बनारसी त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय संस्कृति के मूल स्त्रोत 'वेद' का प्रतिपाद्य ही कर्म है। प्रो. उमारानी ने कहा कि कर्म पर चिंतन और उसके शास्त्रीय स्वरूप का उद्घाटन आज की सामाजिक जरूरत है। प्रो. सुरेद्र दुबे ने जन्म से लेकर मृत्य तक मनुष्य के जीवन को कर्म के अधीन बताया। इससे पहले मेजबान विभागाध्यक्ष प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने विषय प्रवेश कराते हुए विषय के महत्व पर प्रकाश डाला। संचालन डा. छाया रानी और आभार ज्ञापन डा. मधु सत्यदेव ने किया।


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