यहां कुंए में दी गई थी इनायत अली शाह को फांसी
गोरखपुर : शहर के राप्ती तट पर लालडिग्गी के पास स्थित डोमखाना मामूली जगह नहीं है। यह कभी ब्रिटिश हुक
गोरखपुर : शहर के राप्ती तट पर लालडिग्गी के पास स्थित डोमखाना मामूली जगह नहीं है। यह कभी ब्रिटिश हुकूमत की जेल हुआ करती थी। यहां प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं को फांसी दी गई थी। इतिहास के पन्नों में यह मोती जेल के नाम से दर्ज है। इतिहासकार बताते हैं कि यहां शाहपुर स्टेट के शाह इनायत अली शाह, जगदीशपुर स्टेट के कुंवर सिंह के भाई को फांसी दी गई थी। हाल्सीगंज में फांसी देने से पूर्व तरकुलहा देवी के अनन्य भक्त बाबू बंधू सिंह को यहीं रखा गया था।
वर्तमान में शहर का डोमखाना (अंग्रेजों की मोती जेल) संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रहा है। यहां से जेल स्थानांतरित होने के बाद यहां डोम जाति लोगों ने अपना कब्जा जमा लिया। काफी लंबे चौड़े इलाके में फैली इस जेल में कभी आजादी के मतवालों को कैद रखा जाता था। इस एतिहासिक जेल परिसर में स्थित अनेक ऐतिहासिक धरोहर मिटने के कगार पर है।
आज भी मौजूद है खूनी कुआं
समाजसेवी पीके लाहिड़ी बताते हैं कि जेल में स्थित कुएं में क्रांतिकारी शाह इनायत अली को फांसी दी गई थी। इसके अलावा अनेक क्रांतिकारियों को इसी कुएं में दफन कर दिया गया था। इस कुएं को मोती जेल का खूनी कुआं के नाम से जाना जाता है। इस कुएं की मुड़ेर पर वह कील आज भी मौजूद है जिससे लटकाकर क्रांतिकारियों को फांसी दी जाती थी। इसके अलावा अंग्रेजों ने अनेक क्रांतिकारियों को फांसी के बाद इसी कुएं में दफन कर दिया था। अब यह कुंआ ध्वस्त होने के कगार पर है।
गवाह है पाकड़ का पेड़
पुरातत्वविद् कृष्णा नंद त्रिपाठी कहते हैं परिसर में स्थित सैकड़ों साल पुराना विशालकाय पाकड़ का पेड़ आजादी का गवाह है। अनेक क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी।
1802 में बनी मोती जेल
सतासी राजा बसंत सिंह का महल और किले को सन 1802 में अंग्रेजों ने ध्वस्त कर उसे मोती जेल के रूप में परिवर्तित कर दिया था। यहीं पर बसंत सराय का निर्माण कराया गया था। बाद में महल के जेल वाले हिस्से में अंग्रेजों ने डोमों (जमादार) को बसा दिया।
आज भी मौजूद हैं पांच बैरेक
जेल में बने पांच बैरेक आज भी मौजूद हैं। अंग्रेजों के समय में इन बैरेकों में क्रांतिकारियों को रखा जाता था। वर्तमान समय में यहां डोम जाति के लोगों का निवास है। जेल के चारों तरफ लगभग 20 फिट ऊंची दीवार है। इस दीवार का कुछ हिस्सा गिर चुका है।
धरोहर संजोने की तैयारी
इंटेक के लोकल सदस्य ई. कंदोई और समाजसेवी पीके लाहिड़ी ने इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोने की योजना बनाई। इंटेक दिल्ली की टीम ने निरीक्षण कर इसे संरक्षित करने के लिए 46 पेज का प्रस्ताव भेजा है।