कौमी एकता व अकीदत का केंद्र इमामबाड़ा इस्टेट
गोरखपुर : मियां साहब इमामबाड़ा का इतिहास 310 वर्ष पुराना है। यह इमामबाड़ा सामाजिक एकता व अकीदत का
गोरखपुर :
मियां साहब इमामबाड़ा का इतिहास 310 वर्ष पुराना है। यह इमामबाड़ा सामाजिक एकता व अकीदत का केंद्र है। यह गोरखपुर का मरकजी इमामबाड़ा है। भारत में सुन्नी सम्प्रदाय के सबसे बड़े इमामबाड़े के रूप में इसकी ख्याति है। यहां 18वीं सदी के सूफी संत सैयद रौशन अली शाह का फैज बंटता है। यहा हर मजहब के मानने वालों की दिली मुरादें पूरी होती हैं।
इमामबाड़ा इस्टेट मियां बाजार मुगल वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। इसकी दीवार की नक्काशी बेजोड़ है। इसके चार बुलंद दरवाजे इसकी बुलंदी बया करते हैं। यह भारत का इकलौता इमामबाड़ा है जहा सोने-चादी की ताजिया है। करीब तीन सौ वषरें से बाबा रौशन अली शाह द्वारा जलाई धूनी आज भी बदस्तूर जारी है। गोरखपुर में मोहर्रम मनाने की परम्परा अनोखी है। इसका श्रेय इमामबाड़ा इस्टेट को जाता है।
तारीख के आईने में इमामबाड़ा
मिया साहब इमामबाड़ा के छठवें सज्जादानशीन अदनान फर्रूख शाह के मुताबिक रौशन अली शाह करीब सन् 1707 ई. में गोरखपुर तशरीफ लाए। उन्होंने सन् 1717 ई. में इमामबाड़ा तामीर किया। विकीपीडिया में भी इमामबाड़ा की स्थापना तारीख 1717 ई. दर्ज है। उन्होने बताया कि सूफी संत सैयद रौशन अली शाह बुखारा के रहने वाले थे। वह मोहम्मद शाह के शासनकाल में बुखारा से दिल्ली आए। गोरखपुर में उन्हें अपने नाना से दाऊद-चक नामक मोहल्ला विरासत में मिला था। उन्होंने यहा इमामबाड़ा बनवाया, तभी से इस जगह का नाम दाऊद-चक से बदलकर इमामगंज हो गया। मिया साहब की ख्याति से इसको मिया बाजार के नाम से जाना जाने लगा। उस समय अवध के नवाब आसिफउद्दौला थे, जिन्होंने रौशन अली शाह को 15 गावों की माफी जागीर दी।
एक मशहूर वाकिये के दौरान नवाब आसिफउद्दौला रौशन अली शाह की बुजुर्गी के कायल हुए। रौशन अली शाह से उनके लिए कुछ करने की इजाजत चाही। रौशन अली ने नवाब से इमामबाड़े को विस्तृत तामीर के लिए कहा जिसे नवाब ने माना और इमामबाड़ा तामीर करवाया। रौशन अली शाह की इच्छानुसार उसने छह एकड़ के इस भू-भाग पर इमाम हुसैन की याद में मरकजी इमामबाड़े की तामीर शुरू कराई। जो 1796 ई में मुकम्मल हुआ। उनकी बेगम ने यहां सोने-चांदी की ताजिया भेंट की।
ऐतिहासिक फाटक
मिया साहब इमामबाड़ा के फाटक वास्तुकला के अनमोल नमूना है। इस पर की गई नक्काशी लोगों को आकर्षित करती है। चारों दिशाओं में चार फाटक हैं। पश्चिम व पूरब फाटक काफी बड़े हैं। किसी जमाने में इन फाटकों से हाथियों का गुजर होता था। पूरब फाटक तो हमेशा खुला रहता है। लेकिन इसके तीन अन्य फाटक मोहर्रम माह में खोले जाते हैं। सालभर यह बंद रहते हैं।
मस्जिद व ईदगाह
इमामबाड़े की उत्तर तरफ ऐतिहासिक मस्जिद है। यहा पर नमाज के साथ दसर्ें कुरआन व हदीस का कार्यक्रम चलता है। इसके अलावा रौशन अली शाह द्वारा एक एकड़ में इमामबाड़े के दक्षिण तरफ बनवाई गई ईदगाह है। जहा पर ईदुल फित्र व ईदुल अजहा की नमाज अदा की जाती है। यहा बड़ी तादाद में लोग नमाज अदा करते हैं।
आस्था के केंद्र बाबा के सामान
धरोहर के रूप में हजरत बाबा सैयद रौशन अली शाह का हुक्का, चिमटा, खड़ाऊं तथा बर्तन आज भी लोगों की आस्था का केंद्र है, जिसे देखने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं। बाबा के द्वारा बनवाई लकड़ी की ताजिया भी लोगों के दर्शन के लिए आम है।