पटाखे सेहत व पर्यावरण के लिए खतरा
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : रोशनी के पर्व दिवाली पर आतिशबाजी का दौर खूब चलता है। बच्चों से लेकर बु
जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
रोशनी के पर्व दिवाली पर आतिशबाजी का दौर खूब चलता है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग सभी इसमें शामिल होते हैं। पर खुशियों के बीच लोग यह भूल जाते हैं कि आतिशबाजी न केवल सेहत के लिए खतरा है बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाती है। इनके धमाके सुनने की क्षमता पर असर डालते हैं तो धुआं वातावरण में जहर घोलता है। पटाखों में घुले-मिले जहरीले रसायन मिट्टी को भी जहरीला बनाते हैं जिनका प्रभाव लंबे समय पर हमारे सेहत पर पड़ता है।
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श्वांस के रोगी रहें सावधान
सीना रोग विशेषज्ञ डा. वीएन अग्रवाल का कहना है कि आतिशबाजी से वातावरण में गैसों व हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। इसके धुएं के असर से नाक से पानी आना, छींक, गले में खराश की शिकायत देखी जाती है। यह श्वांस की नली तथा फेफड़े में सूजन पैदा करते हैं। इसकी वजह से खांसी, सांस फूलने की शिकायत के साथ ज्वर हो सकता है। दमा के मरीजों में अटैक की शिकायत बढ़ जाती है। श्वांस के रोगियों को अधिक सावधान रहना चाहिए।
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लीवर-किडनी को भी खतरा
वरिष्ठ फिजीशियन डा. चक्रपाणि पांडेय का कहना है कि पटाखों में प्रयोग होने वाले रसायन धुंए के जरिए सांस के रास्ते खून में पहुंचकर लीवर व किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अगर अधिक धुंआ शरीर में चला गया तो उसके रसायन विभिन्न अंगों में जमा होकर गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। अनिद्रा व चिड़चिड़ान की शिकायत बढ़ती है। बैचेनी, घबराहट, उच्च रक्तचाप, तनाव व अवसाद के मामलों में भी इजाफा होता है।
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आंखों को बचाएं
पटाखे के धुएं से आंखों में लाली, दर्द व पानी गिरने की समस्या हो सकती है। बीआरडी मेडिकल कालेज के नेत्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष व प्रोफेसर डा. आशीष घोष बताते हैं कि नजदीक से पटाखे जलाने पर कई बार आंख में पटाखों के कण चले जाते हैं। इससे आंखों की पुतली के झुलसने का खतरा रहता है। पुतली में घाव बन सकता है। --------------------
तेज धमाके बेहद खतरनाक
तेज आवाज वाले पटाखों से सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। मानक के अनुसार ध्वनि का स्तर 45 से 55 डेसीबल होना चाहिए, पर पटाखों के कारण ध्वनि का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। बीआरडी मेडिकल कालेज के ईएनटी विभाग के प्रोफेसर डा. आरएन शाही के अनुसार यह स्तर साठ डेसीबल से अधिक होने पर सुनने की क्षमता प्रभावित होने लगती है। ध्वनि का स्तर नब्बे-सौ डेसीबल से अधिक होने पर खतरनाक हो जाता है।
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पटाखों से सिर्फ नुकसान
होम्योपैथ चिकित्सक डा. रूप कुमार बनर्जी के अनुसार पटाखों से सिर्फ नुकसान होता है। इसमें मौजूद हानिकारक तत्व स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं। सल्फर से दमा बढ़ता है। इसमें संपर्क में आने से चर्म रोग भी हो सकता है। पटाखों के धुएं का आंखों पर दुष्प्रभाव होता है। तेज धमाके से सुनने की क्षमता पर असर पड़ता है। मनुष्य के साथ पशुओं पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है।
यह न करें
- पटाखे नजदीक से न जलाएं
- तेज आवाज वाले पटाखों से दूर रहें
- बच्चों को अकले पटाखे न जलाने दें
- जानवरों के आसपास पटाखे न जलाएं
यह करें
- पटाखे के धुएं से बचें, प्रयास करें शरीर के अंदर न जाए
-पटाखों के रसायन अगर आंख में चले जाएं तो आंखों को पानी से धोएं
- यदि पटाखे से जल जाएं तो ठंडे पानी से धोएं
- किसी दुर्घटना की स्थिति में डाक्टर की सलाह लें।
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