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मौका मिला तो खोल दी 'पहचान' की दुकानें

By Edited By: Published: Thu, 24 Jul 2014 01:14 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jul 2014 01:14 AM (IST)
मौका मिला तो खोल दी 'पहचान' की दुकानें

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : नागरिकों की विशिष्ट पहचान के लिए आधार कार्ड बनाने का मौका देखा तो जगह-जगह दुकानें खुल गई। आधार कार्ड बनाने के लिए शिविर लगाने वाली ये तथाकथित एजेंसियां अधिकृत हैं अथवा नहीं, प्रशासन को ही पता नहीं है। कार्ड बनाने के नाम पर जब प्रशासन के पास धन उगाही की शिकायतें पहुंचने लगी हैं तो उसके कान खड़े हो गए हैं। अब खोजबीन शुरू हुई है तो एजेंसियों का ठिकाना ही नहीं मिल रहा है। प्रशासन अब पता कर रहा है कि आधार कार्ड बनाने की अनुमति का यहां आधार क्या है।

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जिले में मार्च 2014 तक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) तैयार करने का काम हुआ। इसके तहत नागरिकों की पहचान तैयार करने की प्रक्रिया पूरी की गई। मार्च बाद एनपीआर का काम बंद हो गया। शासन ने एनपीआर की जिम्मेदारी आइटीआइ लिमिटेड रायबरेली को सौंपी थी। एनपीआर की प्रक्रिया बंद होने के बाद आधार कार्ड की प्रक्रिया शुरू हुई। गांव से लेकर शहर तक आधार कार्ड बनने लगे। इसी की आड़ में कुछ प्राइवेट एजेंसियां भी सक्रिय हो गई। कार्ड बनाने के नाम पर पैसा लेने लगीं। शिकायत जिलाधिकारी तक पहुंची तो उन्होंने जांच शुरू कराई। जांच में एजेंसियों के अधिकृत होने के एक तो कोई प्रमाण नहीं मिल रहे हैं, दूसरे एजेंसियों के संचालकों का भी कोई ठिकाना नहीं मिल रहा है। ---------

क्या है आधार कार्ड

आधार कार्ड 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या वाला कार्ड है। यह भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा प्रदान किया जाता है। प्राधिकरण की स्थापना सन् 2009 में की गई थी। इसमें कोई भी व्यक्ति अपने किसी पहचान पत्र के आधार पर कहीं भी आधार कार्ड बनवा सकता है।

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आधार कार्ड बनाने वाली किसी एजेंसी के बारे में शासन ने न तो कोई सूची भेजी है और न ही किसी एजेंसी के अधिकृत होने की जानकारी दी है। प्रशासन के संज्ञान में आए बिना कोई एजेंसी जिले में कैसे कार्य कर सकती है। यदि करती है तो गलत है। शिकायत मिली है कि कार्ड बनाने के नाम पर तथाकथित एजेंसी संचालक 50 से 100 रुपये तक की वसूली कर रहे हैं। उपजिलाधिकारियों से जांच कराई जा रही है। जांच शुरू होते ही दुकान समेट कर फरार हो गई हैं।

-डीके तिवारी, एडीएम वित्त


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