एपीआइ से बदलेगा प्रमोशन का सलीका
- केवल पढ़ाने, कापी जांचने से ही नहीं चलेगा काम
- शोध प्रबंध, सेमिनार,शोध मार्गदर्शन का होगा महत्वपूर्ण योगदान
क्षितिज पांडेय, गोरखपुर : विश्वविद्यालयों में शिक्षकों को प्रमोशन के लिए केवल सामान्य शिक्षण कार्य करने से ही अब काम नहीं चलने वाला है। अब प्रमोशन के समय यह भी देखा जाएगा कि संबंधित शिक्षक का अकादमिक योगदान कितना है। कितने शोध प्रबंध को सुपरवाइज किया है, कितने सेमिनारों में भाग लिया है और उनके कितने शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं। इन सबको मिलाकर बनेगा एपीआइ यानी एकेडमिक परफारमेंस इंडीकेटर, जिसके आधार पर प्रमोशन होगा।
दरअसल हाल ही में प्रदेश कैबिनेट ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की शिक्षकों की भर्ती एवं पदोन्नति के संबंध में वर्ष 2010 की नियमावली को स्वीकृति दे दी है। ऐसे में इसके जल्द लागू होने के आसार बढ़ गए हैं। इस अधिनियम के अनुसार अध्यापकों का उनके कार्य-निष्पादन के आधार पर वार्षिक श्रेणीकरण तथा मूल्यांकन किया जाना है तथा अकादमिक निष्पादन आधारित मूल्यांकन प्रणाली (पीबीएएस) के अनुसार पदोन्नति होनी है, जो कि एपीआइ पर आधारित है। साथ ही इसके लागू होने के बाद उच्च शिक्षण संस्थानों में खाली हजारों पद भी तेजी से भरे जाएंगे। यह राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब सहित विभिन्न राज्यों में पहले से ही लागू हैं।
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क्या है एपीआइ :
नई नियमावली में एपीआइ व्यवस्था शिक्षकों की गुणवत्ता मूल्यांकन के लिए है। इसके तहत तीन श्रेणी बनाई गई है। प्रत्येक श्रेणी से वार्षिक आधार पर अलग-अलग न्यूनतम अंक प्राप्त करने होंगे। पहली श्रेणी शिक्षण-प्रशिक्षण एवं मूल्यांकन की होगी, जिसके अंतर्गत सामान्य शिक्षण कार्य कापी जांचना, परीक्षा ड्यूटी, पाठ्यक्रम सुधार आदि से जुड़े कार्य आएंगे। दूसरी श्रेणी सहपाठ्येत्तर क्रियाकलाप होगी, जिसमें संस्थान की अकादमिक और प्रशासनिक गतिविधियों में सहभागिता देखी जाएगी। सबसे महत्वपूर्ण तीसरी श्रेणी है, जिसमें शिक्षक के अकादमिक एवं अनुसंधान योगदान का मूल्यांकन किया जाएगा। इसमें शोध प्रपत्र (पुस्तकें और पत्रिकाएं अलग-अलग) प्रकाशित होने पर, शोध मार्गदर्शन, शोध परियोजनाएं करने पर, सेमिनारों में प्रतिभाग, गेस्ट लेक्चर आदि का ब्योरा लिया जाएगा। इतना ही नहीं उनका शोध पत्र प्रकाशित करने वाली पत्रिका अथवा पुस्तक की ख्याति भी देखी जाएगी। सभी श्रेणियों में अलग अलग कार्यो के लिए अलग अलग नंबर निर्धारित हैं। तीसरी श्रेणी को यूजीसी ने बीते जून में संशोधित कर प्रतिशत आधारित कर दिया है।
एक साल में लाने होंगे ये नंबर :
एसोसिएट प्रोफेसर के लिए -
-पहली श्रेणी से न्यूनतम 75,दूसरी से न्यूनतम 15, कुल 100
-तीसरी श्रेणी - 30 नंबर
प्रोफेसर के लिए -
-पहली श्रेणी से न्यूनतम 75,दूसरी से न्यूनतम 15, कुल 100
-तीसरी श्रेणी - 40 नंबर
लेक्चरर-रीडर नहीं असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसर :
-नए नियम लागू हो जाने के बाद शिक्षकों के पदनाम भी बदल जाएंगे। लेक्चरर को असिस्टेंट प्रोफेसर और रीडर को एसोसिएट प्रोफेसर का पदनाम दिया गया है।
'नए नियमों का स्वागत है। अपने सुझाव में मैने भी ऐसी ही प्रक्रिया का विचार दिया था। इससे उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार आने के आसार हैं।'
प्रो. प्रवीण चंद्र त्रिवेदी
कुलपति
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय
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