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शिक्षक न संसाधन, कैसे बनें विद्वान

गोंडा: बिना संसाधन के ही बच्चों को पढ़ाकर उन्हें विद्वान बनाया जा रहा है। कहने को तो ये राजकीय हाईस्

By Edited By: Published: Fri, 02 Oct 2015 12:05 AM (IST)Updated: Fri, 02 Oct 2015 12:05 AM (IST)
शिक्षक न संसाधन, कैसे बनें विद्वान

गोंडा: बिना संसाधन के ही बच्चों को पढ़ाकर उन्हें विद्वान बनाया जा रहा है। कहने को तो ये राजकीय हाईस्कूल है, लेकिन यहां अध्यापक, किताबें कंप्यूटर व बिजली अभी तक नहीं उपलब्ध हो पाया है। आवश्यक संसाधनों के बिना ही बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है।

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गोंडा -बलरामपुर मुख्या मार्ग पर स्थित गिलौली बाजार में हाईस्कूल तक की शिक्षा के लिए वर्ष 2010 में विद्यालय को उच्चीकृत किया गया। सरकार की मंशा थी की कक्षा 8 तक सरकारी स्कूल से पास बच्चों को हाईस्कूल तक की शिक्षा दी जा सके, लेकिन विभाग का यह दावा खोखला साबित हो रहा है। विद्यालय में चहारदीवारी का निर्माण नहीं कराया गया है। जिससे स्कूल की सुरक्षा नहीं हो पा रही है। हाईस्कूल तक के सात विषयों की शिक्षा के लिये शिक्षक नहीं हैं। यहां पर केवल एक शिक्षिका की तैनाती है। इन्हें अकेले ही पढाने के अलावा सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना पड़ रहा है। इस स्कूल की वाय¨रग हो चुकी है, पंखे भी लगे हैं, लेकिन बिजली कनेक्शन नहीं है। कंप्यूटर रूम है, पर उसमें कंप्यूटर नहीं हैं। पुस्तकालय भी निष्प्रयोज्य है। बच्चों को पीने की पानी की व्यवस्था निजी स्तर से कराई गई है। स्कूल में कुल 30 छात्र ही पंजीकृत हैं।

बोले प्रधानाचार्यविद्यालय की प्रधानाचार्या कंचनबाला सक्सेना का कहना है कि उन्हें इस स्कूल में अकेले ही सभी कार्यों का संचालन करना पड़ रहा है। उनके द्वारा बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा सिलाई आदि भी सिखाया जाता है। बच्चों को अपने स्तर से गले की टाई व डायरी भी दी गई है। बिजली, कंप्यूटर व स्कूल की चहारदीवारी आदि व्यवस्था के लिए विभाग से बराबर मांग की जा रही है। उपलब्ध संसाधन में ही शिक्षण कार्य सुचारू रूप से कराने का प्रयास किया जाता है।

क्या कहते हैं लोग

शिव कुमार शुक्ल का कहना है कि चहारदीवारी न होने से विद्यालय असुरक्षित है। साथ ही पशुओं के ठहरने का अड्डा बना हुआ है।

अशोक शुक्ल का कहना है कि इतने साल बाद भी स्कूल में बिजली की व्यवस्था नहीं है। इस समस्या को दूर कराने की आवश्यकता है।राज नरायन शुक्ल का कहना है कि विद्यालय में अध्यापक व जरूरी सुविधाओं के न होने से अभिभावक अपने बच्चों को भेजने से गुरेज करते हैं। अनिल गुप्ता ने बताया कि जिन लोगों पर विद्यालय को संवारने की जिम्मेदारी है, उन्हीं लोगों ने मुंह मोड़ रखा है। जिससे समस्याएं हावी हैं। विनोद सोनी ने कहा कि शिक्षकों व संसाधनों के अभाव से ही यहां छात्रसंख्या कम है। इस कमी को दूर कराया जाना जरूरी है। ज्ञानदीप का कहना है कि सरकार को व्यवस्थाओं में सुधार के लिए प्रभावी पहल करनी चाहिए, जिससे बच्चों को इसका लाभ मिल सके। ¨रकू शुक्ल ने बताया कि शिक्षकों की कमी से छात्राओं को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पा रही है। शीघ्र ही शिक्षकों की तैनाती की जानी चाहिए।


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