'नर्वस सिस्टम' पर स्मार्ट सिटी का ख्वाब
गोंडा: स्मार्ट सिटी का नाम सुनते ही विकास का सपना आंखों में तैरने लगता है। ऐसा हो भी क्यूं ना, महानग
गोंडा: स्मार्ट सिटी का नाम सुनते ही विकास का सपना आंखों में तैरने लगता है। ऐसा हो भी क्यूं ना, महानगरों से अगर अपने शहर की तुलना की जाय तो सपने चकनाचूर से होने लगते हैं। शहर में विकास के नाम पर योजनाएं बनाई गई, पैसा खूब बरसा, कागजों में काम भी बहुत हुआ, बावजूद तस्वीर नहीं सुधरी। आलम यह है कि समस्याएं ही समस्याएं हैं। न तो सीवर लाइन का इंतजाम है, न ही कचरा प्रबंधन। मामूली सी बारिश में ही पूरा शहर तालाब बन जाता है। ऐसा नहीं है कि इनके खिलाफ लोग आवाज नहीं उठाते, आगे आते हैं फिर 'नर्वस सिस्टम' के आगे वे बेबस हो जाते हैं। शहर में जन शिकायतों के निस्तारण के लिए महानगरों की तर्ज पर कोई प्रबंध नहीं है। यहां पर न तो अलग से कोई शिकायत सेल है, न ही कोई विशेष प्रयास हो रहा है। शिकायतें डंप हैं, निस्तारण का प्रयास सिर्फ कागजी है। हालांकि शिकायतों पर कार्रवाई न किए जाने का मामला कई बार आ चुका है। कई मामलों में तो फर्जी निस्तारण की रिपोर्ट तक लगा दी गई। जनता समस्याओं से कराह रही है, सुनवाई के इंतजाम सिर्फ हवा में हैं। न तो टोलफ्री नंबर है, न ही सोशल मीडिया पर शिकायत का कोई चलन।
औसत अंक : (5-1)
शहर में जनसुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है। यहां की सड़कें बदहाल हैं, शहर जल जमाव की चपेट में है। कदम कदम पर मुश्किलें लोगों को सता रही है। आम लोगों की सुनवाई तक नहीं हो रही है। ''
- राजमंगल ¨सह, जिला समन्वयक आरोह
औसत अंक : (5-1)
“ महानगरों से अगर गोंडा की तुलना की जाय, तो यहां पर क्या है, पहले तो इसे खोजना पड़ेगा। अभी तक यहां के लोगों को मैट्रो तक की सुविधा नहीं मिल पाई है। वाल्वो बस की स्थापना का सपना तक अधूरा है। ''
- शैलेष गुप्ता, जिला समन्यवक सर्व शिक्षा अभियान
औसत अंक : (5-2)
बड़े शहरों में जनता के लिए कई सहूलियतें हैं। वहां पर सड़कों से लेकर मोहल्लों की गलियों तक चमाचम रहती है, जबकि यहां तो मंडल मुख्यालय के बाद भी मुख्य सड़क तक चलने लायक नहीं है। हर साल सड़क पर पैं¨चग होती है, फिर भी गड्ढों से मुक्ति नहीं मिलती। ''
- संतोष मिश्र, कर्मचारी
औसत अंक : (5-3)
स्मार्ट सिटी तो एक सपना है, अभी तक यहां पर शहर में सीवरेज सिस्टम तक नहीं शुरू हो सका है। कूड़ा निस्तारण का कोई प्रबंध नहीं है। पूरे शहर में जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं, यहां तक कि अस्पताली कचरे के निस्तारण का भी इंतजाम नहीं है। ''
- राजकुमार मिश्र, कर्मचारी
औसत अंक : (5-2)
शहर में स्थित स्टेडियम का हाल बेहाल है। वहां पर संसाधनों का अभाव है। अदम गोंडवी मैदान में झाड़ियां उगी हुई है। खिलाड़ी तो है, खेल सुविधाएं नदारद है। ''
- मनीष कुमार, कर्मचारी
औसत अंक : (5-2)
नाम बड़े और दर्शन छोटे की कहानी यहां की सुविधाओं पर सटीक बैठ रही है। न तो कोई अच्छा पार्क है, न ही कोई पर्यटन स्थल। हालांकि प्रशासन ने अपने स्तर से कुछ प्रयास किए, लेकिन देखरेख व संरक्षण न मिलने के कारण वह सपना पूरा नहीं हो पाया। ''
- दिलीप कुमार, कर्मचारी
औसत अंक : (5-1)
शहर में अभी तक एक अदद ट्रांसपोर्ट नगर की स्थापना नहीं हो सकी है। औद्योगिक आस्थान के नाम पर शहर में कुछ भी नहीं है। न तो कोई बड़ा उद्यम है, न हीं कोई बड़ा व्यावसायिक प्रतिष्ठान। ''
- हामिद अली राईनी, व्यापारी नेताजुबां से बस सिर्फ आह ही निकलती है