बदहाली के भंवर में उलझा स्मार्टसिटी का 'सपना'
गोंडा: स्मार्टसिटी का नाम सुनकर आपको थोड़ा अच्छा जरूर लगेगा, लेकिन जब हम शहर में सुविधाओं की तुलना अन
गोंडा: स्मार्टसिटी का नाम सुनकर आपको थोड़ा अच्छा जरूर लगेगा, लेकिन जब हम शहर में सुविधाओं की तुलना अन्य शहरों से करेंगे तो निराशा जरूर होगी। फैजाबाद में बिजली की व्यवस्था ठीक है, लखनऊ में आवागमन की सुविधा बेहतर है। लेकिन जब अपने जिले के शहर पर गौर करेंगे तो अतीत को संजोए इस शहर के हालात गांवों से भी बदतर है। गांव में शौचालय भले न हों, लेकिन आवागमन के लिए सड़क, पानी की व्यवस्थाएं थोड़ा ठीक हैं। शहर की जब 25 फीसदी आबादी खुले में शौच लिए जाती है तो गांव की बात ही अलग है। वर्ष 2011 की जनगणना पर गौर करें तो शहरी आबादी सवा दो लाख के आसपास है। यहां रहने वाले 42 हजार परिवारों में से महज 34 हजार परिवार के पास ही शौचालय है। ग्रामीण इलाकों में शौचालय की उपलब्धता 25 फीसद के आसपास है।
फैक्ट फाइल
ग्रामीण क्षेत्र
कुल ब्लाक-16
कुल ग्राम पंचायत-1054
जनसंख्या-3206240
कुल परिवार-5.67 लाख
उपलब्ध शौचालय-1.62 लाख
शौचालय विहीन परिवार-4.05 लाख
शहरी क्षेत्र
कुल शहर-6
नगर पालिका-तीन
नगर पंचायत-तीन
कुल आबादी-2.25 लाख
कुल परिवार-42 हजार
उपलब्ध शौचालय-34 हजार
शौचालय विहीन परिवार-8 हजार
शहरी इलाकों में रहने वाले परिवार व शौचालय की उपलब्धता
शहर परिवार उपलब्ध अनुपलब्ध
गोंडा 25000 20500 4500
कर्नलगंज 4478 4000 478
नवाबगंज 5500 5100 400
कटराबाजार 2500 300 2200
मनकापुर 1900 1600 300
खरगूपुर 2200 2000 200
नोट: यह आकंड़े अनुमानित हैं, जो विभागीय सूत्रों से जुटाये गये हैं।
औसत अंक: (10-4)
शहर में गांधीपार्क को छोड़ दिया जाय तो कुछ ऐसा नही है, जिससे शहरी इलाके में रहने का अहसास हो। शौचालय की बात तो है सार्वजनिक स्थल पर भी सुविधा नही है।''
-अशोक मौर्या, कर्मचारी
औसत अंक: (10-4)
स्मार्टसिटी शब्द तो बहुत प्यारा है, लेकिन फैजाबाद व लखनऊ की बात कौन करे यहां तो गांवों से भी बदतर हालात हैं। शहर में कोई ऐसी सुविधायें नहीं है, जिससे एक अच्छे शहर का अहसास हो। ''
-एसपी चतुर्वेदी, अधिवक्ता
औसत अंक: (10-2)
स्मार्टसिटी में सिवरेज सिस्टम, पब्लिक ट्रांसपोर्ट, लाइ¨टग व्यवस्थायें होने चाहिए, लेकिन यहां तो कुछ भी नही है। शहर में व पार्क के नाम पर सिर्फ गांधीपार्क बचा, अन्य स्थ्लों पर अवैध अतिक्रमण है। ''
-सुरेश त्रिपाठी, अधिवक्ता
औसत अंक: (10-5)
लखनऊ में मेट्रो है, जबकि यहां आम आदमी पैदल भी नहीं चल सकता। जगह-जगह जाम होने से आवागमन के समय दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शहर में कोई ऐसा शौचालय नहीं है, जिसमें साफ-सफाई हो। ''
-जेएन ¨सह, शिक्षक
औसत अंक: (10-2)
अच्छे शहरों में क्लब बने हुए हैं, जबकि हमारे यहां ऐतिहासिक धरोहरों का अस्तित्व भी अतिक्रमण के चलते खतरे में पड़ गया है, यहां एक भी सिटी बस का संचालन नही हो रहा है।''
-राजेश ¨सह, जिला समन्वयक समेकित शिक्षा
औसत अंक: (10-4)
शहर की सड़कों पर हुए गड्ढे ही तस्वीर बताने के लिए काफी हैं, विकास की कसौटी बना शौचालय भी सभी सार्वजनिक स्थलों पर नही है। कुछ जगह है भी गंदगी की भेंट चढ़ा हुआ है। ''
-डॉ. आरबी ¨सह बघेल, शिक्षक
औसत अंक: (10-3)
शहर में सार्वजनिक स्थलों पर न पेयजल की सुविधा है और न ही सुलभ शौचालय की। जिससे सबसे बड़ी दिक्कत महिलाओं को उठानी पड़ रही है। ''
-प्रतिभा त्रिपाठी, शिक्षक
औसत अंक: (10-2)
कलेक्ट्रेट परिसर में एक भी सुलभ शौचालय नहीं है, जिससे फरियाद लेकर जिला मुख्यालय पर आने वाले लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ''
- डा. त्रिलोचन ¨सह, शिक्षक
औसत अंक: (10-5)
शहर के तालाब अतिक्रमण के शिकार है, आज शहर की आबादी शौचालय न होने के कारण खुले में शौच के लिए जाती है। ''
- मनोज चतुर्वेदी, शिक्षक
औसत अंक: (10-0)
शहर में न तो खेलने के लिए कोई स्टेडियम है और न ही पिकनिक स्पॉट। जिला प्रशासन द्वारा पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित सागर तालाब भी बदहाली का शिकार है। ''
-जीतेंद्र पांडेय, युवा