स्वास्थ्य व शिक्षा विभाग नहीं खर्च कर पाया 21 करोड़
गोंडा: वित्तीय वर्ष के आखिरी दिन सरकारी कार्यालयों में खासी चहल पहल रही। कहीं पर विभिन्न कार्यक्रमों
गोंडा: वित्तीय वर्ष के आखिरी दिन सरकारी कार्यालयों में खासी चहल पहल रही। कहीं पर विभिन्न कार्यक्रमों के बकाये बिलों को निपटाने की होड़ रही, तो कहीं पर नये वित्तीय सत्र को लेकर योजना तैयार की गई। कोषागार में भी सुबह से ही चहल पहल देखने को मिली। वैसे स्वास्थ्य व शिक्षा विभाग 21 करोड़ रुपए का बजट नहीं खर्च कर पाया है, जिसे वापस किये जाने की तैयारी की जा रही है।
वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन मंगलवार की सुबह से ही सरकारी दफ्तरों में अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक पुरानी फाइलों को खंगालने में लगे रहे। सीएमओ कार्यालय में उपकेंद्रों के सौंदर्यीकरण के साथ ही मानदेय भुगतान व अन्य मदों की फाइलों तैयार करने में कर्मचारी लगे रहे। टीकाकरण के साथ ही पल्स पोलियो व अन्य कार्यक्रमों से संबंधित धनराशि का मिलान करने में हर कोई लगा रहा। यहां पर देर शाम तक कोई भी अधिकारी या कर्मचारी खर्च से संबंधित धनराशि की जानकारी नहीं दे पा रहा था। सीएमओ डॉ. राकेश अग्रवाल खुद यहां पर वित्तीय फाइलों को निपटाने में लगे हुए थे। जिला लेखा प्रबंधक अजय प्रताप ¨सह के मुताबिक जिले को मिले करीब 42 करोड़ रुपए के सापेक्ष 25 करोड़ रुपए का उपयोग हो पा रहा है। शेष 17 करोड़ रुपए की धनराशि बची है।
सर्व शिक्षा अभियान के दफ्तर में भी बजट को लेकर खासी चहल पहल रही। यहां पर कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय से लेकर समेकित शिक्षा, मध्याह्न भोजन, प्रशिक्षण सहित अन्य मदों की फाइलें तैयार की जा रही थी। कर्मियों की मानें तो यहां पर यूनिफार्म का तीन करोड़ रुपए फंसा पड़ा है। दरअसल, नियमों के तहत पूर्व में भेजी गई 75 प्रतिशत की धनराशि के खर्च का प्रमाणपत्र देने के बाद ही शेष 25 प्रतिशत की धनराशि दी जानी है। अभी तक खंड शिक्षा अधिकारी स्तर से इसका प्रमाणपत्र न मिलने के कारण इसका खर्च नहीं हो सका है। इसके अलावा विद्यालय अनुरक्षण मद में दो करोड़ 25 लाख रुपए, विद्यालय विकास अनुदान मद में एक करोड़ 82 लाख रुपए, अतिरिक्त कक्षा कक्ष का दो करोड़ 21 लाख रुपए, शौचालय मरम्मत का 12 लाख रुपए, अनुदेशक मानदेय का 65 लाख, शिक्षामित्र मानदेय का डेढ़ करोड़ रुपए की धनराशि भेजी गई है। सहायक वित्त एवं लेखाधिकारी डॉ. रमेश चंद्र चौबे ने बताया कि बजट के अनुरूप खर्च किया जा रहा है।
योजना पर भी रणनीति
- सरकारी कार्यालयों में वित्तीय वर्ष के आखिरी दिन जहां बजट के खर्च को लेकर कवायद चलती रही, वहीं पर नये साल की योजना पर भी चर्चा हुई। मनरेगा सहित कई योजनाएं ऐसी हैं, जिसमें बजट सरेंडर करने का प्राविधान नहीं है। ऐसे में इन विभागों में अगले साल की योजना को लेकर कवायद की गई। जिले से लेकर ब्लॉक स्तर तक के कार्यालयों पर भी बजट का असर दिखा।