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निशाने पर खनन, उत्पीड़न और 'पुलिस बाजार'

गोंडा: कलेक्ट्रेट में बुधवार को भी आरोपों की बौछार रही। निशाने पर पुलिस महकमा था, उत्पीड़न की बात थी

By Edited By: Published: Wed, 19 Nov 2014 11:31 PM (IST)Updated: Wed, 19 Nov 2014 11:31 PM (IST)
निशाने पर खनन, उत्पीड़न और 'पुलिस बाजार'

गोंडा: कलेक्ट्रेट में बुधवार को भी आरोपों की बौछार रही। निशाने पर पुलिस महकमा था, उत्पीड़न की बात थी, पोस्टिंग का मुद्दा था, बालू खनन से लेकर अन्य मामलों में पुलिस की हीलाहवाली की गूंज थी..। किसी ने पुलिसिया लापरवाही वाले मामलों की फेहरिस्त पेश की, तो किसी ने पुलिस पर राजनीतिक इशारे पर काम करने को लेकर सवाल खड़े किये।

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कैसरगंज के भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह की अगुवाई में दूसरे दिन बुधवार को भी कलेक्ट्रेट परिसर में धरना हुआ। दूसरे दिन कार्यकर्ताओं में कुछ अलग ही उत्साह देखने को मिला। धरने की अध्यक्षता जिलाध्यक्ष अकबाल बहादुर तिवारी व संचालन राजेंद्र श्रीवास्तव ने किया। धरने में पूर्व मंत्री रमापति शास्त्री, विधायक बावन सिंह, पूर्व विधायक तुलसीदास राय चंदानी, रमाकांत तिवारी, सूर्य नरायन तिवारी, शेष नरायन मिश्र, डॉ. ओपी मिश्र, विष्णु प्रताप नरायन सिंह, पीयूष मिश्र, शेष नरायन शर्मा, श्रीकांत पांडेय, महेंद्र सिंह, सांसद प्रतिनिधि संजीव सिंह, निर्मल श्रीवास्तव, पंकज श्रीवास्तव, अशोक पांडेय, शेष नरायन शर्मा, नवनाथ शुक्ल, अतुल श्रीवास्तव, दीपक गुप्ता, मनोहर नाथ तिवारी, राजेश सिंह, अजीत तिवारी, रमेश पांडेय, विद्या भूषण द्विवेदी, नान बच्चा पांडेय, अंबरीष सिंह, बृज किशोर मिश्र, पल्टूराम, घनश्याम पांडेय के साथ ही अन्य ने पुलिस प्रशासन पर तीखे प्रहार चलाये। वक्ताओं ने खुले तौर पर आरोप लगाया कि पुलिस रेगुलेशन एक्ट के तहत किसी भी दरोगा को जिले में तीन साल से अधिक समय तक नियुक्त रहने का अधिकार नहीं है। बावजूद इसके यहां पर पुलिस विभाग में इस नियम का पालन नहीं हो रहा है। कई ऐसे दरोगाओं को थानाध्यक्ष का प्रभार दिया गया है, जिनके खिलाफ भी मामले चल रहे हैं। वहीं पर एक मामले को लेकर पुलिस पर रिश्वत का आरोप भी लगाया गया। पुलिस पर अवैध बालू की खदानों से माहवारी वसूलने का आरोप लगाया गया। साथ ही पुलिस के संरक्षण में अवैध बालू खनन, कच्ची शराब का व्यापार सपा से जुड़े हुए लोगों पर संचालित करने का आरोप लगाया गया। बहरहाल, चार घंटे तक चले भाषण में खाकी की एक एक कलई वक्ता खोलते रहे। किसी की पीड़ा झलकी, तो किसी ने आरोपों की बौछार की।


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