विकास के वादे हैं वादों का क्या!
जागरण कार्यालय, गोंडा:
अधर में इंजीनियरिंग कालेज
जिले के युवाओं को रोजगारपरक शिक्षा की सुविधा दिलाने के लिए वर्ष 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 93 करोड़ रुपए की लागत से इंजीनियरिंग कालेज की स्थापना को हरी झंडी दी थी। राजकीय पालीटेक्निक में भूमि पूजन के साथ ही इंजीनियरिंग कालेज का निर्माण भी शुरू हो गया था, लेकिन उससे पहले ही एक विवाद के बाद आयी दूसरी सरकार का असर इस पर पड़ा। जिससे यहां बनने वाले इंजीनियरिंग कालेज को दूसरे जिले में भेज दिया गया। तब से हर नेता वायदा तो करता है, लेकिन सूरत नहीं सुधर रही।
कब खुलेगा सहकारी बैंक
- करीब दस साल पहले गोंडा व बलरामपुर जिले में संचालित जिला सहकारी बैंक को रिजर्व बैंक के आदेश पर बंद कर दिया गया। जिससे यहां पर काम कर रहे कर्मियों के साथ ही किसानों को भी दिक्कतों से जूझना पड़ा। बैंक को दोबारा खुलवाने का मुददा भी हर राजनीतिक दल के एजेंडे में तो होता है, लेकिन कोई ठोस पहल नहीं हो पा रही है।
प्रयागराज के लिए कब होगी ट्रेन
- तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कटरा शिवदयालगंज में गोंडा व फैजाबाद मार्ग पर बने रेलपुल का लोकार्पण तो कर दिया, लेकिन बावजूद इसके अभी तक गोंडा वासियों को प्रयागराज के लिए एक अदद ट्रेन का इंतजार है। वैसे तो कई नेताओं ने जनता को इस वायदों को पूरा करने का आश्वासन दिया, लेकिन हल नहीं निकला।
मेमू ट्रेन सपना न रह जाएं
- गोंडा से लखनऊ के बीच की यात्रा को सुगम बनाने के लिए मेमू ट्रेन के संचालन के लिए कई सालों से कवायदें चल रही है। कभी अधिकारी दावे करते है, तो कभी नेता। लेकिन अभी तक मेमू ट्रेनों का संचालन शुरू नहीं हो सका हैं। जिसके कारण यहां के लोगों को काफी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है।
कब दूर होगी आपदा
- जिलेवासियों की नियति में ही हर साल बाढ़ की त्रासदी शामिल हो गयी। कर्नलगंज व तरबगंज तहसील के करीब दो सौ गांवों के करीब पांच लाख लोग हर साल बाढ़ की त्रासदी से दो चार होते है। जिसमें जन व धन की हानि होती है। हर साल बाढ़ से बचाव की योजना बनायी जाती है, लेकिन सब बाढ़ के पानी के साथ बह जाती है।
ये चंद वादे, उस दावों की हकीकत है, जो चुनाव के दौरान यहां के नेताजी जिले की जनता से कर रहे हैं। हर मोड़ पर लोगों को एक नयी चुनौती से जूझना पड़ रहा है, सड़कों की हालत बदहाल है, स्वास्थ्य सेवाएं खस्ताहाल है, शिक्षा व्यवस्था पटरी से उतर चुकी है, किसान कभी गन्ने की फसल के लिए भटक रहा है, तो कभी बकाया भुगतान के लिए। असल में चुनाव के दौरान किए गए वादे..वादे ही बनकर रह जा रहे है।
सात मई को होने जा रहे संसदीय चुनाव को लेकर तैयारियां हो रही है। नेताओं की फौज तैयार है, उनके सूरमा पूरी ताकत के साथ मैदान में आ गए है। बावजूद इसके चुनाव के दौरान किए जाने वाले वायदे उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे है। नवाबगंज की बंद चीनी मिल को खोलवाने का दावा कई सालों से नेतागण कर रहे है, लेकिन उम्मीदें हर बार चूर चूर हो रही है। जिले भर की जर्जर सड़कें अब यहा की पहचान हो चुकी है। लकड़ी के पुल यहां लोगों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। एक भी राजकीय डिग्री कालेज न होने से युवाओं को दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है। उद्योगों का बुरा हाल है, आईटीआई मनकापुर को छोड़कर कोई बड़ा उद्योग जिले में नहीं है। जिले में डाक्टरों की कमी से स्वास्थ्य सेवाएं बेहाल है। शिक्षकों की कमी से बेसिक शिक्षा जूझ रही है। ऐसा नहीं है कि इस पर किसी का ध्यान नहीं है, हर नेता अपनी चुनावी सभाओं में इन समस्याओं से निजात दिलाने का दावा तो करता है, लेकिन होता कुछ नहीं है।