इतना है बताना अब फर्स्ट डिवीजन है आना
गोंडा : राजधानी जाने के लिए गोंडा बस अड्डे पर पहुंचिए और टूटी-फूटी सीटों वाली बस की हालत आपको पहले ही थका दे तो यह सिरदर्द आखिर किसका है? दौड़ते-भागते आदर्श जंक्शन पहुंचिए और वहां इंटरसिटी में घुसना भी मुश्किल हो जाए तब भी परेशानी कौन झेलता है..हम.. गोंडा के बाशिंदे..। बड़े दु:ख की बात है कि मंडल मुख्यालय पर रहने के बावजूद हमें एक वाल्वो बस सेवा तक मयस्सर नहीं है। मेमू के लिए कई सालों से हम सपने ही देख रहे हैं। जानते हैं क्यों? ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि मौका आने पर हम अपनी ताकत (वोट) का इस्तेमाल ही नहीं करते।
इसके बाद पूरे पांच साल घर के बाहर निकलते ही विकास की बात होते ही खुद को और जनप्रतिनिधियों को कोसते हैं। अब कुछ आंकड़ों पर गौर फरमाइये, जो चीख रहे हैं कि जागने की जरूरत है। यदि पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो जिले में करीब 175 बूथ ऐसे थे जहां मतदान का प्रतिशत 12 से 38 के बीच था। इससे भी दुखद बात यह है कि इनमें से अधिकांश बूथ मंडल मुख्यालय के वीआइपी मोहल्लों के थे। वे मोहल्ले जहां समाज की क्रीम आबादी रहती है, खुद को शिक्षित बताती है, जागरूक बताती है। मतलब साफ है जब हमने लोकतंत्र के महापर्व में मत ही नहीं दिया तो यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि जनप्रतिनिधि हमारा विकास करेगा। खैर, वक्त आ गया है कि आप पिछली बातों को भूल जाइये। एक मौका हमें फिर मिला है। जिला प्रशासन भी उन सभी बूथों पर मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक करने में लगा है। इस बार उन बूथों पर ही नहीं, हमें जिले के सभी बूथों पर अपनी ताकत का एहसास करा रिकार्ड बनाना है। यदि हम-आप जाग गए तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे पास भी फोरलेन होगी। मेमू होगी। और तो और सिर्फ चुनावी मौसम में मुंह दिखाने वाले नेताओं को भी हमारे गोंडा के सुख-दुख के बारे में सोचना पड़ेगा।