रमजान अपने अंतिम पड़ाव पर, ईद नजदीक
जागरण संवाददाता, गाजीपुर : माह-ए-रमजान अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा है। ईद नजदीक होने के कारण बच
जागरण संवाददाता, गाजीपुर : माह-ए-रमजान अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा है। ईद नजदीक होने के कारण बच्चों में जहां खुशी है, वहीं बुर्जुर्गों को रमजान के जाने का दुख है, अगर जीवित रहे तो अगले वर्ष फिर खुदा की रहमत से नवाजे जाएंगे। इबादत के दौरान उनकी आंखें बार-बार छलक जा रही हैं। मालूम हो कि रमजान के जाते ही अल्लाह तौबा के दरवाजे बंद कर देगा। नेकियों के सवाब कम होंगे और गुनाहों का हिसाब होगा। यही कारण है कि रोजेदार बची हुई शब-ए-कद्र की रातों को इबादत में कोई कमी नहीं करना चाहता है। मंगलवार को नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में रोजेदारों ने रोजा रखा और इबादत की। शाम होते ही बाजार में चहल-पहल बढ़ गई जो देर रात तक रही। उधर रमजान के अंतिम मुहाने पर होने के कारण रोजा अफ्तार का भी सिलसिला तेजी पर है।
रोजा नफ्स को काबू में करने का बेहतरीन जरिया
शादियाबाद : रमजानुल मुबारक के दिन जैसे-जैसे गुजर रहे है। वैसे-वैसे रोजेदारों में इबादत की शिद्दत भी बढ़ती जा रही है। हर कोई अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगने में लगा हुआ है। मस्जिदों में नमाजियों की बढ़ती तादात इस बात की गवाही दे रही है कि रोजेदार रमजान के आखरी अशरे में अपने रब की रहमत हासिल करने व मगफिरत पाने के लिए इबादतों
में मशगूल हैं। मस्जिदों में नमाज से फारिग होकर लोग कुरआन पाक की तिलावत में अपना दिन गुजार रहे हैं। अल्लाह ने इस महीने को अपना महीना करार दिया है। रमजान में रोजेदारों के लिए अल्लाह की रहमत बरसती है। रमजान की फजीलत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अल्लाह ने इस पाक महीने में अपने बंदो के हर एक नेक काम का सवाब सत्तर गुना बढ़ा देता है।
अलविदा जुमा की तैयारी जोरों पर
बारा : माहे रमजान का अलविदाई जुमा आने वाला है। इसी के साथ छोटी ईद की तैयारियों में लोग जुट गए हैं। उलेमा के अनुसार माहे रमजान की रुखसती (विदाई) वाला आखिरी जुमा अन्य दिनों की अपेक्षा अफजल होता है। उधर प्रशासन भी अलविदा जुमे को लेकर रणनीति बनाने में जुटा है।
माहे रमजान का आखिरी जुमा यानी अलविदा 23 जून यानी 27 वें रोजे को है। लोग इसे छोटी ईद भी कहते हैं। यही कारण है कि इस खास दिन की तैयारियां भी खास ढंग से की जाती है। उलेमा के अनुसार अलविदा जुमा माहे रमजान की रुखसती का एलान होता है। मदरसा गौसिया के प्रधानाचार्य मौलाना कलीमुद्दीन शम्सी के अनुसार अलविदा जुमे की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है कि इस के बाद पूरे एक वर्ष के बाद माहे रमजान की दोबारा आमद होगी। उस वक्त हम होंगे कि नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। यही सोचकर इमान वालों का दिल बैठने लगता है। अलविदा जुमे को दिन का सरदार बताते हुए कहा कि लोगों को इसका एहतराम करना चाहिए। मस्जिदों में होने वाली भारी भीड़ के मद्देनजर लोगों को तैयार होकर पहले ही पहुंच जाना चाहिए ताकि इतमिनान से इबादत की जा सके। उधर अलविदा जुमे पर मस्जिदों में होने वाली भारी भीड़ के मद्देनजर प्रशासन ने भी अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं।