हथेली पर जान रखकर पार करते हैं नदी
जागरण संवाददाता, बारा (गाजीपुर) : बिहार के सीमावर्ती गांव बारा व गहमर के लोगों की ¨जदगी हर रोज नदी म
जागरण संवाददाता, बारा (गाजीपुर) : बिहार के सीमावर्ती गांव बारा व गहमर के लोगों की ¨जदगी हर रोज नदी में चल रही नाव पर तैरती है। हथेली पर जान रख नाव से नदी पार कर खेतों में जाना इनकी मजबूरी है। गंगा इस पार बारा और गहमर के लोग खेतों में कार्य व पशुओं के लिए चारा लाने प्रतिदिन नाव का सहारा लेते हैं। वर्षों से क्षेत्रीय लोग पीपा पुल बनाने की मांग कर रहे हैं। गंगा इस पार बसा बारा व गहमर गांव का उस पार बांड क्षेत्र में 75 प्रतिशत खेत है। वहां जाने के लिए प्रतिदिन लोग नाव से गंगा नदी पार करते हैं। बारा गांव निवासी 65 वर्षीय मोहम्मद शेर खां कहते हैं कि बचपन से ही बांड में रहते चले आ रहे हैं। गंगा उस पार खेत है, जिसके सहारे आजीविका चलती है। रबी के सीजन में गंगा का पानी घट जाता है और नाव से आने - जाने में काफी सहूलियत रहती है। बरसात के दिनों में गंगा का रूप भयावह हो जाता है। बाढ़ के समय अक्सर नाव पलटती है और खेतों में आते जाते समय लोगों को जान गंवानी पड़ती है। गोपाल चौधरी कहते हैं कि बीते 40 वर्षों से नाव चला रहा हूं। दिन में चार-छह बार आना-जाना होता है। खेतों में कार्य करने वाले लोग कृषि उपकरण, बैलगाड़ी आदि नाव पर ही लाद कर गंगा पार करते है। बताते हैं कि इस इलाके के लोगों का जीवन यापन खेती पर ही आधारित है।अधिकांश लोगों का खेत गंगा उस पार है तो वहां जाना मजबूरी और नाव ही एकमात्र सहारा है। 60 वर्षीय सुदर्शन यादव कहते हैं कि करीब 40 वर्षों से कई बार बाढ़ की त्रासदी झेली गई प्रतिदिन हथेली पर जान रखकर नाव के सहारे खेतों में आते जाते हैं।
वर्ष 1989 में डूबी थी नाव
गंगा में नाव डूबने का सिलसिला तो लगातार चला आ रहा है। इस साल बाढ़ में गंगा उस पार का पूरा बाढ़ इलाका गंगा में विलीन हुआ था तो करीब एक दर्जन पशु काल के गाल में समा गए थे। इसके पहले भी नाव डूबने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। वर्ष 1989 में नाव डूबने से एक ब्यक्ति सहित एक दर्जन पशु भी काल के गाल में चले गए थे। नाविकों की सतर्कता से डूबने वाले लोगों को बचा लिया गया है।