पिता पुत्र में सुलह पर अंसारी बंधु दोनों तरफ से गायब
जागरण संवाददाता, गागाजीपुर : पार्टी की अंदरूनी जंग अखिलेश यादव जीते और उनके सम्मुख अब दूसरा खेमा समर
जागरण संवाददाता, गागाजीपुर : पार्टी की अंदरूनी जंग अखिलेश यादव जीते और उनके सम्मुख अब दूसरा खेमा समर्पण की मुद्रा में आ गया है। इसको लेकर यहां अंसारी बंधुओं के समर्थकों में बेचैनी है तो कोर ग्रुप अब अपने बलबूते चुनाव में जाने की तैयारी में जुटा है। इसका संकेत गत शुक्रवार को ही अपने समर्थकों की बैठक में पूर्व सांसद अफजाल अंसारी दे चुके हैं। अब लोगों की निगाह इस बात पर लगी है कि समाजवादी पार्टी मैदान में किसे उतारती है, जिलाध्यक्ष राजेश कुशवाहा को या पिछले चुनाव के रनर रहे राजेश राय पप्पू को।
समाजवादी पार्टी की रार प्रारंभ हुई तो उस वक्त तात्कालिक कारण बने थे अंसारी बंधु और उनका कौमी एकता दल। पूरी लड़ाई को प्रदेश की तरह जनपद ने भी हर पल देखा और समझा। विभाजन के कगार पर पहुंची पार्टी को चुनाव आयोग के फैसले ने एकतरफा कर दिया। अब सपा के मार्गदर्शक मुलायम ¨सह यादव ने अपने समर्थकों की सूची अध्यक्ष अखिलेश यादव को सौंप कर उनके लिए टिकट देने की गुजारिश की है।
सूत्रों के मुताबिक जमानियां से ओम प्रकाश ¨सह और जहूराबाद से सैय्यदा शादाब फातिमा का नाम उनकी सूची में है लेकिन उन्होंने भी शिबगतुल्ला अंसारी के लिए टिकट मांगने में परहेज किया है। जाहिर है जिनके नाम पर खुद अखिलेश यादव इस कदर भड़के थे कि पार्टी का पूरा समीकरण ही आज बदल गया है। तब उनकी ओर से शायद ही टिकट देने की पहल हो। हालांकि विधायक शिबगतुल्ला अंसारी ने शपथ पत्र तो अखिलेश यादव के पक्ष में ही दिया था।
वर्ष 1984 से जिस मुहम्मदाबाद की सीट पर अंसारी बंधुओं का कब्जा है उसे वह यूं ही सपा के भरोसे छोड़ेंगे नहीं। वर्ष 2002 का चुनाव एक अपवाद है जब भाजपा के कृष्णानंद राय ने उन्हें पटकनी दी थी। चुनाव में उनकी भागीदारी तय है। पार्टियां भले बदलती रहीं विधायक अफजाल अंसारी होते रहे। कभी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से तो कभी सपा से। उनके भाई शिबगतुल्ला अंसारी भी पहला चुनाव समाजवादी पार्टी से जीते तो दूसरा अपने कौएद से।
अभी उनकी निगाह भले ही सपा की घोषणा पर है लेकिन तैयारियां अपने दम पर भी चल रही हैं। बसपा को छोड़ दूसरे दलों के उम्मीदवार भी घोषित नहीं हैं। मुहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र के अलावा दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी उनकी रणनीति मायने रखेगी। देखना होगा कि सपा से टिकट न मिलने पर दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में वह अपना उम्मीदवार उतारते हैं अथवा टैक्टिकल राजनीति का सहारा लेकर अपने विरोधियों से हिसाब चुकता करते हैं। निगाहें उनके अगले कदम की ओर चुनावी धुरंधरों की जमी हुई हैं।