करइल इलाके में इस बार नहीं दिखेगी मसूर की फसल
लौवाडीह (गाजीपुर): काला सोना उगाने के लिए मशहूर करइल इलाके में इस बार मसूर की फसल कहीं दिखाई नहीं
लौवाडीह (गाजीपुर): काला सोना उगाने के लिए मशहूर करइल इलाके में इस बार मसूर की फसल कहीं दिखाई नहीं देगी। बाढ़ के बाद लगातार तेज बरसात के साथ-साथ मगई व गंगहर नदी के जलस्तर में बढ़ाव होने के कारण आज भी खेत पानी से भरे पड़े हैं। मगई नदी का जलस्तर तो घट रहा है परंतु खेतों को सूखने में लगभग एक महीना लग जाएगा। ऐसे में मसूर की बोआई काफी पिछड़ जाएगी।
चित्रा नक्षत्र के तीन दिन करीब 10 अक्टूबर के बाद से किसान मसूर की बोआई शुरू कर देते हैं जो 10 नवंबर तक चलता है। इसके बाद मसूर की बोआई करने पर पैदावार कम हो जाती है। ऐसे में इस वर्ष खेत तैयार न होने के कारण मसूर की बोआई नहीं के बराबर होगी। कम लागत और मुनाफा अधिक होने के कारण किसानों में इस फसल को प्रति काफी आकर्षण रहता है। करइल इलाके में अभी भी कई जगहों पर ¨सचाई की सुविधा नहीं है। मसूर की फसल को ¨सचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए यह फसल किसानों में लोकप्रिय होने का दूसरा बड़ा कारण है। हालांकि प्राकृतिक आपदाओं के कारण कुछ वर्षों से इसका इसका रकबा कुछ कम हुआ है लेकिन आज भी इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। राजापुर, परसा, मुर्तजीपुर, खेमपुर, लौवाडीह, जोगामुसाहिब, करीमुद्दीनपुर, देवरिया, मसौनी, गोंड़उर, महेशपुर, लट्ठूडीह, सोनवानी, सियाड़ी, खरडीहा, गोंडी, खैराबारी, अवथही, सुखडेहरी, अमरूपुर, तरका, माचा, धनेठा, कनुवान सहित बलिया से सटे गांव में लगभग 10 हजार बीघे तक मसूर की खेती की जाती है। हो सकता है इस वर्ष किसान केवल अगले वर्ष बीज की आवश्यकता की पूर्ति के लिए थोड़ी बहुत खेती करेंगे।