यहां पारंपरिक होली की धूम
लौवाडीह (गाजीपुर) : इन दिनों फूहड़ गीतों का बोलबाला है। गांवों में अब भी पारंपरिक होली गीत गाने वालों
लौवाडीह (गाजीपुर) : इन दिनों फूहड़ गीतों का बोलबाला है। गांवों में अब भी पारंपरिक होली गीत गाने वालों की टोली जम रही है। इस समय के युवाओं को भले ही वह गीत अच्छी न लगे लेकिन इसमें होली की मिठास घुली रहती है। इसे परिवार के साथ सुना जाता है।
लौवाडीह व पारो गांव के लोग मिलकर एक दूसरे गांव में टोली के माध्यम से गीत गाते हैं। होली गीत चार प्रकार की शैली से गाए जाते हैं। खारज, धमार, देवढ़ व चढ़ाव। खारज शैली के गीत 'रघुवर जनक लली खेले अवधपुरी में फाग' , धमार शैली में गीत 'खेले अवध हमारो सखी श्याम संगे होली', देवढ़ शैली में 'ये दऊ खेलत फूल फाग रे' वहीं चढ़ाव शैली में गीत 'राधा मोहन खेलत होली' सुनकर लोग होलियाना रंग में डूब जाते हैं। इसमें सर्वप्रथम टेक लिया जाता है। इसमें धीरे-धीरे गीत गाते गाते अचानक लय व संगीत का सुर तेज हो जाता है। इसके अलावा होली में परंपरागत चहका भी गाया जाता है। इसके गीत के बोल 'बेइला फूले आधी रात गजरा केकर गले डालूं' शुरू होते ही लोग झूमने लगते हैं। इन गीतों को आज भी गाने वाले जनकदेव राय, विजय शंकर पांडेय, रामचंद्र राय ने बताया कि यह इन गीतों का लोप होता जा रहा है। इनका स्थान नए तथा फूहड़ गीत ले रहे हैं। भारतीय संस्कृति की पहचान पारंपरिक होली गीतों के माध्यम से ही मिलती है। युवा इसे गाने से परहेज कर रहे हैं। इससे इस परंपरागत गीत के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है।