मजलिस के साथ अव्वल वक्त अदा करें नमाज
गाजीपुर : इमाम हुसैन को मालूम था कि हिंदुस्तान प्रेम, मुहब्बत और भाईचारगी का मरकज है। इसीलिए जब यजीद
गाजीपुर : इमाम हुसैन को मालूम था कि हिंदुस्तान प्रेम, मुहब्बत और भाईचारगी का मरकज है। इसीलिए जब यजीद की फौज ने उनका रास्ता रोका तो उन्होंने कहा कि मुझे हिंद निकल जाने दो लेकिन जालिमों ने इसकी इजाजत नहीं दी। इमाम को अपने काफिले को तपते रेगिस्तान की ओर मोड़ना पड़ा। इमाम का काफिला मुहर्रम की दूसरी तारीख को करबला पहुंचा। खेमा नहर से दूर लगाया गया। जंग हुई। तीन दिन के भूखे-प्यासे इमाम के साथ उनके इकहत्तर असहाब शहीद हुए। मुहर्रम की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। इस अजीम कुर्बानी की याद जिंदा है। माह-ए-मुहर्रम की दूसरी तारीख सोमवार को गम भरे माहौल में बीत गई। तीसरी मुहर्रम पर मंगलवार को नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में मजलिस-ओ-मातम का सिलसिला जारी रहा। मुस्लिम समुदाय ने रसूल के नवासे (स.) इमाम हुसैन को याद किया। शिया समुदाय के घरों से मजलिस व मातम की सदाएं तेज हो गई। छोटे, बड़े बुजुर्ग व महिलाएं बढ़-चढ़ कर जुलूस व मजलिसों में हिस्सा लिया। नगर के नखास, रजदेपुर, मच्छरहट्टा, कथवलिया, मुहम्मदपुर आदि में मजलिस की सदाएं तेज होती रही।
तेज हो रहा अजादारी का सिलसिला
ग्रामीण क्षेत्रों में सौरम, पारा, सुसुंडी, हैंसी, मोलनापुर, अरजानीपुर, हुसैनपुर, गंगौली, चावनपुर, कामूपुर आदि में अजादारी का सिलसिला दिनों-दिन तेज हो रहा है। नोनहरा थाना क्षेत्र के हुसैनपुर गांव में पूरे दिन मजलिस का क्रम बना रहा। मौलाना ने फरमाया कि करबला की सरजमीन पर पहुंच कर इमाम हुसैन के घोड़े ने कदम रोक लिए। इमाम ने कई बार कोशिश की कि उनका घोड़ा आगे बढ़े लेकिन जब वह टस से मस न हुआ तो इमाम घोड़े से उतर। स्थानीय लोगों से उस जगह का नाम पूछा। लोगों ने उस स्थान के कई नाम बताए। एक ने कहा इसे करबला भी कहते हैं। इमाम ने काफिले वालों को खैमा (टेंट) लगाने का हुक्म दिया। जालिमों ने इमाम को दरिया से दूर जाने को कहा। इस दौरान उनके छोटे भाई हजरत अब्बास को गुस्सा आ गया। तलवारें खींच गई लेकिन इमाम ने कहा कि हम जंग नहीं बल्कि नाना का दीन बचाने आए हैं। पूरे दिन मजलिसों में करबला के शहीदों का जिक्र होता रहा। अजादारों ने आंसुओं का नजराना पेश किया। खुर्शीद गाजीपुरी के इमामबाड़ा में हुई मजलिस में मौलाना शबाब रहबर ने फरमाया कि इमाम ने नमाज को बचाने के लिए कुर्बानी पेश की। इसलिए सबसे जरूरी है कि नमाज को अव्वल वक्त पर अदा किया जाए। इसके बाद उन्होंने करबला के शहीदों के मसायब बयान किए जिसे सुनकर लोगों की आंखें भर आई। इस दौरान डा.कायम रजा, मुहम्मद रजा, उर्फी, शंटू, अख्तर, गुड्डू आदि थे।
महिलाएं भी ले रही हिस्सा
पुरुषों के साथ महिलाएं भी करबला के शहीदों का गम मनाने में पीछे नहीं हैं। वह सुबह ही घर के सारे कामों को निबटाने के बाद मजलिसों में शिरकत कर रही हैं। उनको अपने घर की फिक्र है न बच्चों की चिंता। बस हाए.. हुसैन की सदा बुलंद कर रही।
हुसैन मुझसे और मैं हुसैन से
मौलाना हसन मेंहदी ने फरमाया कि इमाम हुसैन से रसूले खुदा (स.) बहुत मुहब्बत करते थे। एक हदीस में हुजूर ने फरमाया कि 'हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूं'। 'जिसने हुसैन को तकलीफ दी उसने मुझे तकलीफ दी'। नमाज में सजदे को तूल देकर उन्होंने इमाम हुसैन को लोगों में पहचनवाया लेकिन उनकी आंख बंद होते ही लोग इमाम हुसैन के खून के प्यासे हो गए। रसूल (स.) की बातों को भूल गए। इमाम से बैयत (दोस्ती) करनी चाही लेकिन इमाम ने इंकार कर दिया। आखिर करबला के मैदान में बुलाकर उनको शहीद कर दिया।
नम आंखों से याद किए गए शोहदा
शादियाबाद : कस्बा दयालपुर स्थित मदरसा बहरूल उलूम में हुई बैठक में नम आंखों से शोहदाए करबला की कुर्बानी को याद किया गया। वक्ताओं ने कहा कि इराक के करबला में इमाम हुसैन व उनके अन्य साथियों को शहीद किया गया था। उनकी याद में मुहर्रम के महीने को गम का महीना कहा जाता है। शहीदों की याद में जुलूस, अमारियां एवं नौहाख्वानी की जाती है। इस दौरान लोगों से अपील की गई कि लोग शांतिपूर्ण ढंग से इस पर्व को मनाएं। बैठक में हाजी इनामुद्दीन, असलम सिद्दीकी, अफजाल सिद्दीकी, इरफान सिद्दीकी, परवेज आलम, हाफिज अमीरूद्दीन आदि थे। अध्यक्षता डा.बदरूद्दीन शास्त्री ने की।
अजादारी में आज
सदर .. चंपिया बाग में सुबह 11 बजे चौकी व अलम।
सदर ..बरबरहना में घोड़ा व अलम रात 11 बजे।
सदर ..रजदेपुर में जुलजनाह शाम सात बजे।
सदर ..नियाजी मोहल्ला में अलम तीसरे पहर तीन बजे।
..एकता का संदेश देता है मुहर्रम
बीते वर्ष की तरह इस साल भी सट्टी मस्जिद, मच्छरहट्टा स्थित अंजुमनें गुलामाने रसूल की ओर से शोहदा-ए-कर्बला का आयोजन किया गया। इसमें मौलाना तहरीर चतुर्वेदी ने फरमाया कि मुहर्रम का पर्व करबला में शहादत दे कर इस्लाम की हिफाजत करने वालों को याद करने का है। यह पर्व हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देता है। मानवता पर दानवता हावी न हो जाए। इस दुनिया पर अधर्मी लोगों के शासन को रोकने के लिए इमाम हुसैन ने अपने 72 सार्थियों संग कुर्बानी दी। इस जंग में जालिमों ने छह महीने के बच्चे को भी नहीं छोड़ा। उनके बयान को सुनकर लोगों की आंखें भर आई। इस मौके पर धर्मार्थ कार्य मंत्री विजय मिश्र, हैदर, सादिक रहमान, सद्दाम, मेहताब, मुख्तार अंसारी, शादाब कुरैशी, जावेद, अहमर, बिकानू, अब्दुल वहीद चौधरी, बादशाह, नूरी, कमलेश वर्मा आदि थे।