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शासन तक पहुंचा बोल्डर व स्टैंपिंग घोटाला

By Edited By: Published: Sun, 31 Aug 2014 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 31 Aug 2014 01:00 AM (IST)
शासन तक पहुंचा बोल्डर व स्टैंपिंग घोटाला

गाजीपुर : कटान पीड़ित गांवों पुरैना एवं सेमरा को बचाने के लिए शासन से आए धन में सिंचाई विभाग ने बंदरबांट कर दिया। इससे उन गांवों का आस्तित्व संकट में फंस गया है। विभाग की कारस्तानी का यह प्रकरण शासन तक पहुंच गया है। शासन को संज्ञान दिलाने वाले सपा कार्यकर्ताओं ने सरकार की छवि भी धूमिल करने का आरोप लगाते हुए प्रकरण की जांच सीबीआइ से कराने की मांग की है।

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आरोप है कि कटान के अलावा नहरों की सफाई एवं मनरेगा के कार्यो में भी घोटाला किया गया है। अधिशासी अभियंता से अपने कार्यालय में नहीं बैठने की भी शिकायत है।

ये हैं ओराप

- पुरैना गांव में तेरह बोल्डर की स्टैंपिग होनी चाहिए लेकिन सिर्फ नौ स्टैंपिंग ही की गई है। चार स्टैंपिंग की रकम विभाग ने गबन कर लिया है।

- बाढ़ सुरक्षा कार्य के लिए बोल्डर की ली जा रही सप्लाई का कोई स्टाक रजिस्टर व लेखा-जोखा विभाग के पास नहीं है।

- बोल्डर सप्लाई के लिए जनवरी-फरवरी 2014 में 25 सौ घन मीटर का एडवांस भुगतान कर दिया गया। इसके बाद भी सात सौ घन मीटर बोल्डर सप्लाई कम लिया गया।

- सेमरा व पुरैना गांव में भी बाढ़ सुरक्षा कार्य में बोल्डर सप्लाई व कैरेज मिट्टी की सप्लाई पर रायल्टी नहीं काटी गई। यह घोर अनियमितता है।

- सेमरा में पहले के आए 45 सौ घन मीटर बोल्डर को ही नई सप्लाई दिखा धन का गबन किया गया है।

- बोल्डर के लाग बुक को प्राइवेट रखकर डीजल-पेट्रोल दिखाकर लाखों रुपये का फर्जीवाड़ा किया गया है।

- दस फरवरी 2013 में बंधे के रख-रखाव के लिए आए 30 लाख रुपये का केवल पांच फीसद ही कार्य कराया गया। शेष 95 फीसद गबन कर लिया गया।

- इसी तिथि में ड्रेनों की सफाई के लिए भी 27 लाख रुपये आए थे। उसमें भी पांच फीसद काम करा कर सब गबन कर लिया गया।

- दस फरवरी एवं चार जुलाई 2013 को नहरों के लिए क्रमश बीस लाख एवं 11 लाख रुपये आए थे। इसका भी घोटाला कर लिया गया।

- बाढ़ राहत कोष से जिलाधिकारी द्वारा 30 लाख रुपये दिए गए थे, उसमें भी धांधली की गई। ताड़ीघाट एवं नौली रजवाहा के अलावा फुल्ली, बारा मुख्य कैनाल में भी फर्जीवाड़ा किया गया।

- मनरेगा के तहत साइन बोर्ड लगाने के नाम पर लाखों रुपये का गबन किया गया। बीस फीसद भी बोर्ड मौके पर नहीं लग रहे हैं। 20 लाख रुपये का फर्जी वर्क आर्डर बनाकर भुगतान कर दिया गया।


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